Book Title: Jage Yuva Shakti
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 55
________________ (५३) भावनाएँ न जगें, किन्तु उदार व उदात्त दृष्टि रहे । आपका संघर्ष किसी व्यक्ति के साथ नहीं, विचारों के साथ है । भाई- भाई, पति-पत्नी, पिता-पुत्र दिन में भले ही अलग-अलग विचारों के खेमे में बैठे हों, किन्तु सायं जब घर पर मिलते हैं तो उनकी वैचारिक दूरियाँ बाहर रह जाती हैं और घर पर उसी प्रेम, स्नेह और सौहार्द की गंगा बहाते रहें - यह है वैचारिक उदारता और सहिष्णुता । जैनदर्शन यही सिखाता है कि 'मतभेद भले हो, मनभेद न हो । "मतभेद, भलें हो मन भर, मनभेद नहीं हो कण भर ।" विचारों में भिन्नता हो सकती है, किन्तु मनों में विषमता न आने दो । विचारभेद को विचार सामंजस्य से सुलझाओ, और वैचारिक समन्वय करना सीखो । युवा पीढ़ी में आज वैचारिक 'सहिष्णुता की अधिक कमी है और इसी कारण संघर्ष, विवाद एवं विग्रहं की

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