Book Title: Jage Yuva Shakti Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 19
________________ होती है, और नव-सर्जन में काम आती है, किन्तु अर्जन और सर्जन परिपूर्ण होने के बाद "विसर्जन" भी होना चाहिए । जगत से, प्रकृति से, समाज से और परिवार से जो कुछ प्राप्त किया है, उसे, उसके लिए देना भी चाहिए । जो ज्ञान, अनुभव; नया चिन्तन और विविध प्रकार की जानकारियाँ आपको दीर्घकालीन श्रम के द्वारा, साधना के द्वारा प्राप्त हुई हैं, उनको समाज के लिए, मानवता के कल्याण हेतु विसर्जन करना भी आपका कर्तव्य है । जो धन-समृद्धि, वैभव आपको, अपनी सूझ-बूझ, परिश्रमशीलता और भाग्य द्वारा उपलब्ध हुआ है, उन उपलब्धियों को चाहे, वे भौतिक हैं, या आध्यात्मिक हैं, मानवता के हितकल्याण हेतु उनका अर्पण-विसर्जन करना भी अनिवार्य है । सरोवर में या कुँए में जल भरता ही रहे, कोई उस जल का उपयोग न करे, तो वह जल गन्दा हो जाता है, खाराPage Navigation
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