Book Title: Jage Yuva Shakti
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 36
________________ (३४) विश्वास नहीं कर सकता, वह संसार में किसी पर भी विश्वास नहीं कर सकता । विश्वास करने की उसकी सभी बातें झूठी हैं, क्योंकि आपके लिए सबसे जानापहचाना और सबसे नजदीक आप स्वयं हैं, इससे नजदीक का मित्र और कौन है ? जब आप अपने सबसे अभिन्न अंग आत्मा पर, अपनी शक्ति, अपनी बुद्धि और अपनी कार्यक्षमता पर भी विश्वास नहीं कर सकेंगे तो दुनिया में किस पर विश्वास करेंगे ? माता, भाई, पत्नी, पुत्र, मित्र ये सब दूर के एवं भिन्न रिश्ते हैं । आत्मा का रिश्ता अभिन्न है, अतः सबसे पहले अपनी आत्मा पर विश्वास करना चाहिए। आपकी आत्मा में अनेक शक्तियाँ हैं । धर्म शास्त्र की भाषा में आत्मा अनन्तशक्तिसम्पन्न है । और आज के विज्ञान की भाषा में मानव शरीर, असीम अगणित शक्तियों का पुंज है । कहते हैं, पश्चिम के मानस शास्त्रियों ने प्रयोग करके बताया है

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