Book Title: Indian Antiquary Vol 08
Author(s): Jas Burgess
Publisher: Swati Publications

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Page 210
________________ -186 THE INDIAN ANTIQUARY. [JULY, 1879. .iHTHR..HTRO TRODARENERLOCTOL ---..-........ SATTATRE t ernit धामलजमा लाखzoritin zabeitthus in yoti Hanum a anadamsaritaitheist Lhosaritainment Me J उनम श्रीगणशायणपातु यौतुकुलारातिविश्व विश्वभरी हरि जमान पनात सतीर्थ vie viprit stryof parosant iful Loyiiist: जिष्णुविष्णुगयाख्यया । १ आसीद गुर्जरराज"मुख्यसचिव ("श्रीतेजसूमु पुरा श्रीराणः सुजमाद्विजावनधनो म्लेच्छाकुले मातले । तत्पुत्रः सचिवायRUMENTREAT H Eldstory pashurt to exis thjinnerfaroofीर्जयति सत्कर्माहAnsfviod biwittail. 310 Thaipatnovoti.iri armKRISHWot_yaateiasistan व्या प्रजया राजद्वाजकराजकाचार्यचतुरः प्रास्वाटवाकुर: स्वस्ति श्रीमत्प्रभासाधिपतिशिवसदारा. yobtdb ) ban godt bris gan धत्तावाप्सलक्ष्मी स्तुल: "श्रीभमभूपों जयति जनमन श्रतिद्वकल्पवृक्षः । तन्मंत्री कर्मसिंह सचिवसुरंगिरिःक्ष्मासुराधार उज्वैभा श्रीभम्मभूपा जयात जनुनाASTHATManaameennershottsRASAINirem. । तिनं माधुमार्माचरणविनयतः सेवमानोसमानः। ३ यत्राम पामरमपीह पुनाति यत्र श्राद्ध प्रयोति पितरी titolomiT HAR JHy) of a sinutribuil 11 sanydieodiwoe क्षयनषिमततलीथमतदis hotada saloKLAINM E TAमर्मसातपंपरिकमलापलबद्ध मूलसोपानमुच्छ्रितानपानमकारयः। ४ उद्दर ibu da vso borot voll arond Tahad darga A समंतात् । नव्यं सुभव्यमिह कारपतिस्म पूजा माध्याम्हिकीमनुदिन्नं ननु मोमनाथे । स्वधातृमेघनृपतेः परलोकपात्रासौख्याय नियजलधान्यनिधि द्विजेभ्यः ।। 'श्रीभमभूपतिरदात्तचियेम येन विज्ञापितो बिनधर्म त्रासौख्याय नित्यजलधान्यनिधि द्विजस्यः mankaTONE: पराग्रहार। ६ आद्या बंद्याः सुरांशा प्रथितयशसस्तेऽजनानंदनाद्या एकः श्रीकर्मसिंहः स्फुरति कलियुगे सेवकः सन्परोक्षे। यामं यः स्वामिनाम प्रथितमतनुत स्वास्थितौ मेघराज्ञो विप्राणां स्थाष्णुवृत्तिं श्रुतिचयमिह च स्थापयामास साक्षात् । ७ अमृतं पाययन गा यः सुरपत्तनगोपुरे । आहावे कीर्तिसद्धर्मा वा कौमारममेलयन् (त् ) । ८ वंशवृद्धिकराः संतु रामा द्यास्तस्य नंदनाः । सुरवृक्षोपमाः श्रीमत्स्वपूर्ववयरा (सः) समाः । ९ किं दुर्लभं महदुपासनया यंदश्माकाठिन्यगेहमपि विष्णुगयातटस्थः ।। लब्ध्वा सुदर्शनतनुं सुजनाय दत्ते स्नाने गदाधरनतौ च मतिः सुदृष्टः । १० ज्ञानं ददिर्भाति जनेषु भानुः सानंदामनंदपुरद्विजाय्यः । श्रितः श्रुति तत्सुतवासुदेवः सांगस्मृतीचक्र इप्रा(मां) प्रशस्ति । ११ लिखितेयं पंडितसर्वादित्येन ॥ सुत्रमधुसुदनेनोत्कीर्णा । संवत १४३७ वर्षे आषाढवाद ६ शनी ।। ७ ।। श्रीः ॥ शुभंभवतु । विष्णुः प्रीयतां The inscription is in praise of Karamsi, a Brahmans, to ensure the salvation of his dePorvil Winia, minister of the Waja Raja | ceased brother Meghraj, etc. etc. The inscripBharma, and relates how he has repaired the | tion is dated Sam. 1437, corresponding to about kunda or reservoir at Mal Gaya (near Dhamlej), A.D. 1381, a most interesting period of the and how he had also erected a trough for cattle provincial history. And the inscription is most to drink from, at the gate of Patan. It cele- | instructive. It no longer bears the names of brates the ancestry of Karamsi, also saying the paramount râjâs of Anhilwada, nor that formerly Riņo, son of Tej, chief minister of of their Muhammadan successors, but merely the Gujarat rajas, had done many excellent of the local Waja ruler. We know from the works, and had protected Brahmans at a time | history of Gujarat, that A.D. 1881 was when the world was filled with Mlechhas (here a period of great confusion in the affairs of the Musalmans), but that now Karamsi, son of province generally. Zafar Khân, the viceroy Rino, was the shelter of the religious classes, appointed by the Emperor Firoz Tighluk, (and etc. It relates also how the minister induced who is mentioned in the Unå inscription above, the Raja to give a village named Meghpur to I died in 1371; and the great Zafar Khan, who I t Zafar Khan, founder of the Gujarat Sultanat, came to that province in about A.D. 1391.

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