Book Title: Indian Antiquary Vol 06 Author(s): Jas Burgess Publisher: Swati PublicationsPage 18
________________ 14 THE INDIAN ANTIQUARY. सहजशक्तिशि प्रजोप (१) नागताभयप्रदानपरतया त्रिणवद पास्ताशेषस्वकार्य्यफल प्रार्थनाधिकार्त्यप्रदानानन्दितविद्वत्सुहृत्प्रणयिहृदयः पादचारी * (') व सकलभुवनमण्डलाभोगप्रमोद परम माहेश्वरः श्री गुहसेनस्तस्य सुतस्तत्पदनखमयूखसंतानविसृतजान्हवीजलैघ( 8 ) प्रक्षालिताशेषकल्मषः प्रणयिशतसहस्रोपजीव्यमानसंपद्रूपलोभादिवाश्रितस्सरभसमागामिकैर्गुणै(१) क्षाविशेषविस्मापिताखिलधनुर्द्धरः प्रथमनरपतिसमति सृष्टानामनुपालयिता धर्म्मदायानामपाकर्त्ता ( 10 ) घातकारिणामुपप्लवानां दशयिता श्रीसरस्वत्योरेकाधिवासस्य सँहृतारातिपक्षलक्ष्मीपरिभोगदक्षवि क्रमो विक्रमोपस('') [प्रा ] तत्रिमल पत्थिवाश्री परममाहेश्वरः श्रीधरसेनस्तस्य सुतस्तत्पादानुध्या तस्सकलजगदानन्दनात्यद्भुतगुणसमुदयस्थ('') [गि] तसमग्रदिङ्कण्डलस्समरशतविद शतोभासनायमण्डलाग्र दुद्युतिभासुरान्सपीठो व्यूढगुरुमनोरथ(13) [ स ] विद्यापरापरविभागाधिगमविमलमतिरपि सर्व्वतस्सुभाषितलवेनापि सुखपपादनीयपरितोबस्समग्र लोकागाध(*) गाम्भीर्य्यहृदयोपि सुचरितातिशय सुव्यक्तपरमकल्याणस्वभवः खिलीभूत कृतयुगनृपतिपथ विशोधनाधिगतोदग्रaiiपरममाहेश्वरः श्रीशलादित्यस्तस्वा महाभार [JANUARY, 1877. ( '' ) र्द्धर्म्मानुपरोधोज्ज्वलतरिकृतार्त्यसुख संपदुपसेवानिरूढधम्र्मादित्यद्वितीयनामा (") नुजस्तत्पादानुध्यातः स्वयमुपेन्द्रगुरुणेव गुरुणात्यादरवता समभिलषणीयामार्प स्कन्धासक्ता परमभद्र इव धु('') र्थ्यस्तदाज्ञा[सं]पादनैकरसतयैवोद्वहन्खेट सुखरतिभ्यामनायासित सत्व संपत्तिः प्रभावसंपद्वशीकृतनृपतिशतशिरो(") रत्नच्छायोपगूढपदपीठोपि परावज्ञाभिमानरसानालिङ्गितमनोवृत्तिः प्रणतिमेका परित्यज्य प्रख्यातपरुषाभि[मानैर](१) प्यकतिभिरनासादितप्रतिक्रियोपायः कृतनिखिलभुवनामोदविमलगुण संहति प्रसभ [ [विघ ]टितसकलकलविलसितगतिनी [च](१०) जनाधिरोहिभिरशेषैर्दोषैरना मृष्टात्युन्नत हृदयः प्रख्यातपौरुषास्त्रकौशलातिशयगणतियविपक्षक्षि तिपतिलक्ष्मीस्वयग्राह [ प्र] - (21) काशितप्रवीरपुरुषप्रथम संख्याधिगमः परममाहेश्वरः श्रीखर ग्रहस्तस्य तनयस्तत्पादानुष्यातः सकलविद्याधिगम[विहित] (१४) निखिलविद्वज्जनमनः परितोषातिशयस्सत्वसंपदा त्यागौदार्येण च विगतानुसन्धानाशमहितारातिपक्षमनोरयाक्षभंङ्ग L. 17, read सव: L. 18, read मेकां; पौरुषा. L. 19, rend प्यरातिभिः संहतिः कलिक्लिसित. L. 21, read परममहेश्वर:L. 22, read समाहिता: • L. 6, read फल I. 7, read स्तत्पाद जलीय. I. 10, read दर्शयिता L. 11, read पार्थिव श्री. 1. 12, read [विजयशो पीठो महाभार: L. 13, read सुखोष L. 14, read स्वभाव. L. 15, road 'ज्ज्वलतरीकृता. L. 16, read स्कन्धासकांPage Navigation
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