Book Title: History of Canonical Literature of Jainas
Author(s): Hiralal R Kapadia
Publisher: Shardaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 26
________________ GENESIS OF THE JAINA SCRIPTURES the contrary, the two main divisions of Anuoga viz. Mülapadhamānuoga and Gandiyānuogal and their contents lead us to assume that this Anuoga deals mote or less with the biographies of the Tirtharkaras, the Kulakaras” (patriarchs), the Ganadharas and several other persons who attained liberation or were born in the "तत्थ मूलपढमाणुयोगे त्ति, इह मूलभावस्तु तीर्थकरः, तस्स प्रथमं पूर्वभवादि अथवा मूलस्स पढमा भवाणुयोगो एत्थ तित्थगरस्स. अतीतभवभावा वट्टमाणवयजम्मादिया भावा कहेज्जति अहवा जे मूलस्स भागा ते मूलपढमाणुयोगो, एत्थ तित्थकरस्स जे भावा प्रसूतास्ते परियायपुरिसत्ताइ भाणियव्वा; गंडियाणुयोगो त्ति इक्खुमादिपर्वकंडिकावत् एकाधिकारत्तणतो गंडियाणुयोगो भण्णति, ते च कुलकरादियातो विमलवाहणादि कुलकराणं पुव्वभव्वजम्मणामप्पमाण. गाहा, एवमादि जं किंचि कुलकरस्य वत्तव्वं तं सव्वं कुलकरगंडियाए भणितं, एवं तित्थगरादिगंडियासु वि" From this it can be seen that the Cūrnikara interprets Mūlapadhamānuoga in three ways while commenting upon the following portion of Nandi (s. 57):"मूलपढमाणुओगेणं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा देवगमणाई आउंचवणाई जम्मणाणि अभिसेआ रायवरसिरिओ पव्वज्जाओ तवा य उग्गा केवलनाणुप्पयाओ तित्थपवत्तणाणि असीसा गणा गणहरा अज्जपवत्तिणीओ संघस्स चउव्विहस्स जं च परिमाणं जिणमणपज्जवओहिनाणी सम्मत्तसुअनाणिणो अ वाई अणुत्तरगई अ उत्तरवेउव्विणो अ मुणिणो जत्तिआ सिद्धा सिद्धीपहो जह देसिओ जच्चिरं च कालं पाओवगया जे जहिं जत्तिआई भत्ताइ छेइत्ता अंतगडे मुणिवरुत्तमे तमरओघविप्पमुक्के मुक्खसुहमणुत्तरं च पत्ते एवमन्ने अ एवमाइभावा मूलपढमाणुओगे कहिआ, सेत्तं मूलपढमाणुओगे।" 1. This consists of several kinds of gandiyās. One of them is Cittantaragandiya and is described in the Cunni (pp. 58-61) on Nandi (s. 57) as under :"चित्तंतरगंडिय' त्ति, चित्ता इति अनेकार्थाः अंतरे इति उसभअजियंतरे वा दिदा, गंडिका इति खंडं अतो चित्तंतरे गंडिका दिट्ठा, तो तेसिं परूवणा पुव्वायरिएहिं इमा निद्दिट्ठा ।आदिच्चजसादीणं उसभस्स पओप्पए णरवतीणं । सगरसुयाण सुबुद्धी इणमो संखं परिकथेइ ॥१॥ चोद्दस लक्खा सिद्धा णिवईणेक्को य होति सव्वटे । एवेकेक्के ठाणे पुरिसगुणा होतऽसंखेज्जा ॥२॥ पुणरवि चोद्दस लक्खा सिद्धा णिवदीण दोण्णि सव्वटे । जुगठाणे वि असंखा पुरिसजुगा होंति णायव्वा ॥३॥ जाव य लक्खा चोद्दस सिद्धा पण्णास होंति सव्वढे । पण्णासट्ठाणे वि य पुरिसजुगा होंतिऽसंखेज्जा ॥४॥ एगुत्तरा दुलक्खा सव्वट्ठाणे य जाव पण्णासा । एक्कक्कुत्तरठाणे पुरिसजुगा होतिऽसंखेज्जा ॥५॥ विपरीयं सव्वद्वे चोद्दस लक्खा य निव्वुओ एगो । सच्चेव य परिवाडी पण्णासा जाव सिद्धिए ॥६॥ तेण परं लक्खादि दो दो ठाणा य समग वच्चंति । सिवगतिसव्वद्वेहिं इणमो तासिं विधी होई ॥७॥ दो लक्खा सिद्धीए दो लक्खा णरवदीण सव्वदे। एवं तिलकखचउ पंच जाव लक्खा असंखेज्जा ॥८॥ सिवगतिसव्वद्वेहिं चित्तंतरगंडिता ततो चउरो । एगा एगुत्तरिया एगादि बितिउत्तरा तइया ॥९॥ ततिएगादि तिओत्तर निगमादि ओत्तरा चउत्थे य । पढमाए सिद्धक्को दोण्णि य सव्वट्ठसिद्धमि |१०|| तत्तो तिण्णि णरिंदा सिद्धा चत्तारि होंति सव्वटे । इय जाव असंखेज्जा सिवगतिसव्वट्ठ सिद्धेहिं ॥११॥ ताए बिउत्तराए सिद्धक्को तिण्णि होति सव्वटे । एवं पंच य सत्तय जाव असंखेज्ज दो तिन्नि ।। १२॥ एग चउ सत्त दसगं जाव असंखेज्ज होंति दोतिण्णि । सिवगतिसव्वदेहिं तिउत्तरा एत्थ णेयव्वा ॥१३॥ ताहे तियगादिबिउत्तराए अऊणतीसं तु तियग ठावेउं । पढमे उ णत्थि खेवो सेसेसु इमे भवे खेवा ॥१४॥ In all, there are 32 verses; but I have here given only 14. 2. For the lives of 7 Kulakaras as the reader should refer to Samavāya (s. 157), Paumacariya (III, 50-58) and Trisasti (I, 2, 137-206). 3. This is, of course, a rough rendering. HIST.-2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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