Book Title: Gyandhara 03
Author(s): Gunvant Barvalia
Publisher: Saurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
View full book text
________________
हम अपने विचारों और कार्य के अनुसार भाग्य - निर्माण करते है । आज हम जो कुछ है वह हमारे ही पूर्वजन्मों का फल है । हमारी वर्तमान अवस्था के लिए हम ही जिम्मेदार है । कोई हमारा कुछ अच्छा या बुरा नहीं कर सकता । हम जैसा कर्म करेगें वैसा ही फल हम पायेंगे । ऐसा कभी संभव नहीं है कि " करे कोई और भरे कोई ।" हमारे कर्म का फल, या दूसरे के किये हुए कर्म का फल कोई दूसरा भोगते या हम भोगते, ऐसा कभी होई नहीं सकता । हम कर्म के फल से भाग भी नहीं सकते । कर्म करने के लिए हम स्वतन्त्र है, लेकिन उसके फल भुगतने में स्वतन्त्र नहीं है, कर्म की सत्ता ही सर्वोपरी है । हमारे कर्म अनुसार ही हमें फल की प्राप्ति होती है ।
-
- यदि हम इस तथ्य को, आत्मा के इस गुप्त रहस्य को - अच्छी तरह समझ ले तो अपने भविष्य का ऐसा सुन्दर निर्माण कर सकते हैं कि हमारा पतन तो रूक जायेगा और क्रमशः ऊँचे-ऊँचे उठते जायेगें (आध्यात्मिक दृष्टि से) जब तक कि जीवन के लक्ष्य को प्राप्त न कर ले ।" आध्यात्मिक विकास के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचकर हम परमात्मस्वरूप को भी प्राप्त कर सकते है । प्रत्येक आत्मा जीनमें अखूट अनंत ज्ञान, शक्ति, वीर्य आदि है, वह प्रयत्न विशेष से परमात्मा बन सकता है ।
कर्म - सिद्धांत को समजना, पहचानना, बस फिर इनसे बचना, और मुक्त बनने की कोशिश करे, बस यही शुभ कामना के साथ विराम पामती हूँ । सब लोग कर्म - सिद्धांत का सही स्वरूप समझकर कर्मक्षय की दिशा में अग्रसर होकर अन्तिम-धाम मुक्ति को यथा शिघ्र प्राप्त करे, इसी शुभेच्छा के साथ....
॥ सर्वे कर्मरहिताः भवन्तु ॥
ज्ञानधारा-3
૧૧૦
જૈન સાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર-૩