Book Title: Gyandhara 03
Author(s): Gunvant Barvalia
Publisher: Saurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
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साम्प्रत (वर्तमान) प्रवाह में बालकों एवं युवकों __ के लिए धार्मिक जनशिक्षा की रूपरेखा
'तीर्थंकर वाणी' सामायिक के विद्वान तंत्री. | डॉ. शेखरचन्द्र जैन | देश-विदेशमें जैन धर्म के उपर प्रवचनें देते है, अनेक जैन संस्थाओं के साथ जुड़े है । आशापुरा जैन ट्रस्ट के ट्रस्टी, समर्थ वक्ता ।
पिछले ४०-५० वर्षों में विज्ञान और उसके अनुसंधानों ने दुनिया को चकित कर दिया है । जो परिवर्तन हजारों वर्षों में नहीं हो पाये थे वे चंद वर्षों में द्रुत गति से हुए हैं और हो रहे हैं । विज्ञान के इस अनुसंधान ने मात्र भौतिक मान्यताओं में आमूल परिवर्तन नहीं किये अपितु हमारी धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक मान्यताओं को ही हिला दिया है। यह अलग बात है कि कहीं रूढ़ियों-अंधविश्वासों को तोड़ा है तो कहीं अनेक विश्वासों को भी झकझोर दिया है । परिणाम दोनों प्रकार के हैं । ___ भारत वर्ष परापूर्व से सुख-समृद्धि का देश रहा है । परिणामस्वरूप यहाँ उत्तम या उच्च संस्कृति का जन्म हुआ - विकास हआ। हमें बड़ी ही सरलता से भोजन - पानी - घर उपलब्ध हुए । हमारी आवश्यकतायें भी सीमित थीं । संग्रह का भाव कम था । परस्पर प्रेम, मैत्री, सहयोग का महत्त्व था । हमारे तीर्थंकरो - ऋषि, मुनियों ने हमें अपरिग्रह का पाठ पढ़ाया । दया-करुणा-ममता-क्षमा का ज्ञान दिया, क्योंकि हमारे यहाँ वैमनस्य, परस्वहरण का कोई कारण नहीं था । हमारी संस्कृति ने मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी, वनस्पति सबकी रक्षा को महत्त्व देकर उसे भी धर्म के अन्तर्गत रखा । हम तो कल्पवृक्ष के देश के वासी हैं जहाँ चाहत की चीजे सुलभ थीं - अतः कहीं संघर्ष या संग्रह का भाव नहीं था। __वर्तमान समय में आज का युवक दो राहे पर खड़ा है - वह कहाँ जाये इसकी उसे दुविधा है । एक ओर उसे भौतिक सुख अपनी ओर खींचते हैं - उसे फैशन की चकाचौंध लगती है । खानपान में यह भक्ष्याभक्ष्य ही भूल गया है । येनकेन प्रकारेण धनोपार्जन के चक्कर में उलझ रहा है । दूसरी ओर उसे अपनी संस्कृति अपनी ओर मुड़ने का संकेत दे रही है । परंपरायें संस्कार उसे आज भी अपनी ओर खींच रहे हैं - उसकी स्थिति तो उस नारी के समान हो रही है, जिसे एक ओर ज्ञानधारा-3 मम्म १४ न साहित्य SIMARY-3