Book Title: Gyandhara 03
Author(s): Gunvant Barvalia
Publisher: Saurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
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कोई सिगरेट पीकर फेंक देता है, उससे मेरा घर जल जाता है । अब मैं ऐसा कहूँ कि - "पिछले जन्म में मैंने कुछ पाप किया होगा, इसलिए मेरा घर जला' तो बहुत दूर अन्वय लगाना होगा, जो उचित नहीं कहा जायेगा । सामूहिक जिम्मेदारी भी उसके अंतर्गत है । सारे गाँव का भी एक सम्मिलित कर्म होता है, अकेले की ही जिम्मेदारी है, ऐसा नहीं ।
भौतिक जगत् दूषित होता है और पदार्थ के गुणधर्म विकारी हो रहे हैं । पृथ्वी के पंच तत्त्वों का भी संतुलन रखना जरूरी है। ओझोन पटल फटने से पृथ्वी ज्यादा ही गरम हो रही है, जिसके कारण बर्फ पिघल कर कभी समुद्र अपनी मर्यादा छोड़ने की आशंका है । प्रदूषण के कारण नये-नये रोग तो फैल ही रहे है।
शारीरिक तौर पर हम कमजोर हो रहे है, कई व्याधियों के शिकार हो रहे हैं - ये सव हमारे व्यक्तिगत या समष्टिगत कर्मों का ही तो परिणाम है । व्यक्तिगत असंयम हो या सामाजिक प्रदूषणा हो, सभी कमों का परिणाम भुगतना ही पड़ता है। - सामाजिक तौर पर हमारे कर्म के परिणाम ही हम भुगत रहे हैं । जंतुनाशक दवाईयाँ और रासायनिक खाद का इस्तेमाल करके हम पौधे और जंतु तो मार ही रहे है, साथ-साथ हमारे शरीर में भी विष डालकर खुद का विनाश कर रहे है । इस तरह वातावरण का संतुलन नष्ट करके हमारे कर्म हम भुगत रहे हैं । समाज-व्यवस्था भी क्षीण हो रही है।
सांस्कृतिक तौर पर हमारे भोगवाद और लोभ का परिणाम पाकर संस्कृति नष्ट कर रहे हैं । मानव संस्कृति मृत:प्राय हो चुकी है । मनुष्यजीवन की कोई कीमत ही नहीं रही । संपत्ति ही मानव का सब कुछ बन चुकी है। __ वैश्विक तौर पर हम जैसे कि प्रलय की ओर जा रहे है । 1992 के नवम्बर में 1575 वैज्ञानिकों ने जिनमें सौ नोबल प्राईज विजेता थे, उन्होंने 'डूम्स डे अलर्ट' जाहिर किया था । उन्होंने चेतावनी दी थी कि यदि जनसंख्या पर काबू न पाया जाये और विश्व का वातावरण समुद्र और मछली, पानी के स्रोत, जमीन, जंगल और जीवंत जंतुओं का शोषण न रोका जाये और विश्वसेवकत्व के बारे में न सोचा जाय जो 2030 तक विश्व का वातावरण सुधार न सके वैसा बिगड़ गया होगा और अपने कर्मों के कारण [ ज्ञानधारा-3
म ११४ मन साहित्य ज्ञानसत्र-3]