Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 2
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 13
________________ ९६९ ९७१ ९७४ ९७५ ९७९ ९८० ९८१ ९८२ ९१५ ९८३ ९८७ ९८९ ९८९ ९९० ९९० विषय-सूची मिथ्यादृष्टि आदि अपना गुणस्थान छोड़कर गणस्थानोंमें नाम कर्मके सत्वस्थानोंकी __किन गुणस्थानोंको प्राप्त होते हैं ९०३ योजना किन अवस्थाओं में मरण नहीं होता ९०४ इकतालीस पदोंमें सत्त्व स्थानोंका कथन नाम कर्म के बन्ध स्थानोंके तीन प्रकार ९०५ मूल प्रकृतियों में त्रिसंयोगी भंगोंका कथन इकतालीस पदों में भंग सहित उत्तर प्रकृतियोंमें उक्त कथन स्थानोंका कथन ९०६ गोत्र कर्मका बन्ध उदय सत्त्व उनमें भुजाकार बन्ध लानेका राशिक यन्त्र ९१० गुणस्थानोंमें गोत्रके भंग गुणस्थानों में गोत्रके भंगका यन्त्र उनमें अल्पतर भंगोंका कथन ९१० आयुके बन्ध उदय सत्त्वका कथन मिथ्यादृष्टिके भंग लानेकी लघु प्रक्रिया असंयतमें भंगोंका विधान बायु बन्धके नियम नाना जीवोंकी अपेक्षा आयु बन्धके भंग असंयतमें अल्पतर अप्रमत्त आदिमें भुजाकार गुणस्थानोंमें आयुके अपुनरुक्त भंग उनको उपपत्ति गुणस्थानोंमें आयुबन्धके भंगोंका जोड़ अप्रमत्तमें अल्पतर वेदनीय गोत्र आयुके सब भंगोंका जोड़ ९२३ नाम कर्मके सब भुजाकारादि बन्धोंका यन्त्र वेदनीय गोत्र आयुके मूल भंग ९२५ उन भंगोंकी उत्पत्तिका साधारण उपाय ९२६ मोहनीयके त्रिसंयोगी भंग अवक्तव्य भंगोंका कथन ९२७ गुणस्थानोंमें मोहनीयके स्थानोंकी संख्या वे स्थान कौन हैं, यह कथन नाम कर्मके उदयस्थान सम्बन्धी पाँच काल मोहनीयके त्रिसंयोगमें विशेष कथन तथा उनका प्रमाण ९२८ बन्धस्थानमें उदय और सत्त्वस्थान पाँच कालोंकी जीव समासोंमें योजना ९२९ उदयस्थानमें बन्ध और सत्त्वस्थान नाम कर्मके उदय स्थानोंकी उत्पत्तिका क्रम ९३१ सत्त्वस्थानमें बन्ध और उदयस्थान नाना जीवोंकी अपेक्षा उक्त कथन मोहनीयके बन्धादि तीनमें से दोको आधार उन स्थानोंके स्वामी ९३३ और एकको आधेय बनाकर कथन उन स्थानोंका कथन ९३४ बन्ध उदयमें सत्त्वका कथन नाम कर्मके उदय स्थानोंका यन्त्र ९४१ बन्ध सत्त्वमें उदयका कथन नाम कर्मके उदय स्थानोंमें भंग ९४२ उदय और सत्त्वमें बन्धका कथन इकतालीस जीवपदोंमें सम्भव भंग ९४६ नाम कर्मके स्थानोंके त्रिसंयोगी भंग पुनरुक्त भंगोंका कथन ९५४ नाम कर्मके स्थानोंके गुणस्थानोंमें , नाम कर्मके सत्त्वस्थान ९६१ नाम कर्मके स्थानोंके चौदह मार्गणामें ., उनकी उपपत्ति ९६२ नाम कर्मक स्थानोंके इन्द्रिय मार्गणामें .. दस और नौके स्थानोंकी प्रकृतियां ९६३ नाम कर्मक स्थानोंके कायमार्गणामें मद्वेलना स्थानोंका विशेष कथन ९६३ नाम कर्मके स्थानोंके योगमार्गणा में , उद्वेलनाके अवसरका काल ९६४ कषाय और ज्ञान मार्गणामें उनका लक्षण संयम मार्गणामें तेजकाय वायुकायमें उद्वेलन योग्य प्रकृतियाँ ९६५ दर्शन लेश्या मार्गणामें सम्यक्त्व आदिको विराधना जीव कितनी कर भव्य और सम्यक्त्व मार्गणामें करता है ७ मझर मार्गणा ९९१ ९९४ ९१६ ९९७ ९३३ १००४ १००४ १०१२ १.१६ १०२२ २०२२ १०३१ १०३४ १०३५ १०३८ १०४१ १०४२ १०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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