Book Title: Girnar Granthoni Godma
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 44
________________ सामियसामलधीरचरण मह सरणि भवंतरि। इम परिहरि आहार नियमु लइउ संघधुरंधरि ।। ४ ॥ एकवीसि उपवासि तामु अंबिकादिवि आविय। पभणइ स पसन्न देवि जय जय सद्दाविय ।। ५ ॥ उठेविणु सिरिनेमिबिंबु तुलिउ तुरंतउ। पच्छलु मन जोएसि वच्छ तुं भवणि वलंतउ ।। ६ ॥ णइ वि अंवि......कंचण......बलाणइ। ......बिंब मणिमउ तहिं आणइ ।। ७ ।। पढमभवणि देहलिहि देउ छुडि पुडि आरोविउ। संघाहिवि हरिसेण तम दिसि पच्छलु जोइउ ।। ८ ।। ठिउ निच्चलु देहलिहि देवु सिरिनेमिकुमारो। कुसुमवुठि मिल्हेवि देवि किउ जयजयकारो || ९ ॥ वइसाहीपुंनिमह पुनवतिण जिणु थप्पिउ। पच्छिमदिसि निम्मविउ भवणु भवदुहतरु कप्पिउ ।। १० ।। न्हवणविलेवणतणीय वंछ भवियणजण पूरिय । संघाहिव सिरिअजितुरतनु नियदेसि पराइय ॥ ११ ।। सयलवित्ति कलिकालि कालकलुसे जाणवि छाहिउ । झलहलंति मणिबिंबकंति अंबिकुरुं आइय ।। १२ ।। समुद्रविजयसिवदेविपुत्तु जायवकुलमंडणु। जरासिंधदलमलणु मयणभडमाणविहंडणु || १३ ।। राइमईमणहरणु रमणु सिवरमणि मणोहरु । पुनवंत पणमंति नेमिजिणु सोहगुसुंदरु ।। १४ ।। वस्तुपालि वरमंति भूयणु कारिउ रिसहेसरु । अठ्ठावयसंमेयसिहरवरमंडपुमणहरु |॥ १५ ॥ कउडिजक्खु मरुदेवि दुह वी तुंगु पासाइउ। धम्मिय सिरु धूणंति देव वलिवि पलोइउ ।। १६ ।। तेजपालि निम्मविउ तत्थ तिहुयणजणरंजणु। कल्याणउ तउ तुंगु भुयणु लंघिउगयणंगणु ।। १७ ।। CARना२: ग्रंथोनी मोम + 3७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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