Book Title: Girnar Granthoni Godma
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 51
________________ बुधा: सुधाकुण्डमिति, वर्णयन्ति मुधैव तत्। ___ दत्तेऽजरामरपदमिदमेव पराणि न ।। ८१०॥ दिव्यतीर्थजलैर्युक्तं, मुक्तं दोषैर्बभूव तत् । यत्पय:स्पर्शतो व्याधिराधिश्च व्रजति क्षयं ।। ८११।। नागेन्द्रेणाथ धरणनाग्ना नेमौ सुभक्तित:। चक्रे यानाहिना कुण्डं, झात्कृतिं निर्झरां दधत् ।। ८१२ ।। ह्रदिनीह्रदलक्षेभ्यो, यत्र पुण्यं पयो व्रजत्। तच नाम्ना नागझरमिति ख्यातिं ययौ भुवि ।। ८१३ ।। ततोऽपि चमरेन्द्रेण, विभौ भक्तिं वितन्वता। वाहनेन मयूरेण, स्वकुण्डमकरोन्महत् ।। ८१४ ।। मयूरपादाक्रमणार्निययुर्निर्झराणि यत्। ___ मायूरर्निझरमिति, तन्नाम्ना भुवि पप्रथे ।। ८१५।। चन्द्रसूर्यादिकुण्डानां, प्रभावो वचनातिगः । यत्पय:स्पर्शनात्पापानीव कुष्टानि यान्त्यहो ।। ८१६ ।। यदम्बाकुण्डमुद्दण्डं, तत्रासीत्सप्रभावम(व)त् । तदम्भ:सेवनाद्वात्यादोषो याति सुदुस्तरः ।। ८१७ ।। अन्यैरपि स्वकुण्डानि, देवैर्विदधिरे तदा। येषां प्रभावसंसिद्धिं, देवा एव हि जानते ।। ८१८ ।। अथाहमहमिकया, स्पर्धमाना: परस्परम्। अपूजयन्नेमिनाथं, देवाः शक्त्याहृतैः सुमैः ।। ८१९ ।। सुस्नातो भरत: कुण्डे, गजेन्द्रपदनामनि। बिभ्रद्धौते वाससी च, नेमिनाथमपूजयत्।। ८२० ।। पूर्वोक्तेनैव विधिना, चक्री नीराजनां विभोः । समं मङ्गालदीपेनोत्तारयामास दक्षिणम् ।। ८२१ ॥ PRनारः ग्रंथोनी गोमा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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