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जीवाजीवाधिकार
(३९ से ४३) अप्पाणमयाणंता मूढा दु परप्पवादिणो केई। जीवं अज्झवसाणं कम्मं च तहा परूवेंति ।। अवरे अज्झवसाणेसु तिव्वमंदाणुभागगं जीवं । मण्णंति तहा अवरे णोकम्मं चावि जीवो त्ति। कम्मस्सुदयं जीवं अवरे कम्माणुभागमिच्छति । तिव्वत्तणमंदत्तणगुणेहिं जो सो हवदि जीवो।। जीवो कम्मं उहयं दोण्णि वि खलु केइ जीवमिच्छति । अवरे संजोगेण दु कम्माणं जीवमिच्छति ।। एवंविहा बहुविहा परमप्पाणं वदंति दुम्मेहा । ते ण परमट्ठवादी णिच्छयवादीहिं णिहिट्ठा। परात्मवादी मूढजन निज आतमा जाने नहीं। अध्यवसान को आतम कहें या कर्म को आतम कहें। अध्यवसानगत जो तीव्रता या मन्दता वह जीव है। पर अन्य कोई यह कहे नोकर्म ही बस जीव है। मन्द अथवा तीव्रतम जो कर्म का अनुभाग है। वह जीव है या कर्म का जो उदय है वह जीव है। द्रव कर्म का अर जीव का सम्मिलन ही बस जीव है। अथवा कहे कोइ करम का संयोग ही बस जीव है। बस इसतरह दुर्बुद्धिजन परवस्तु को आतम कहें।
परमार्थवादी वे नहीं परमार्थवादी यह कहें। आत्मा को नहीं जाननेवाले पर को ही आत्मा माननेवाले कई मूढ़ लोग तो अध्यवसान को और कर्म को जीव कहते हैं।
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