Book Title: Gatha Samaysara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Smarak Trust

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Page 108
________________ सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार ( ३४५ से ३४८ ) केहिंचि दु पज्जएहिं विणस्सए णेव केहिंचि दु जीवो । जम्हा तम्हा कुव्वदि सो वा अण्णो व णेयंतो ।। केहिंचि दुपज्जएहिं विंणस्सए णेव केहिंचि दु जीवो । जम्हा तम्हा वेददि सो वा अण्णो व णेयंतो ।। जो चेव कुणदि सो चिय ण वेदए जस्स एस सिद्धंतो । सो जीवो णादव्वो मिच्छादिट्ठी अणारिहदो || अण्णो करेदि अण्णो परिभुंजदि जस्स एस सिद्धंतो । सो जीवो णादव्वो मिच्छादिट्ठी अणारिहदो || १०१ यह आतमा हो नष्ट कुछ पर्याय से कुछ से नहीं । जो भोगता वह करे अथवा अन्य यह एकान्त ना ॥ यह आतमा हो नष्ट कुछ पर्याय से कुछ से नहीं । जो करे भोगे वही अथवा अन्य यह एकान्त ना ॥ जो करे, भोगे नहीं वह; सिद्धान्त यह जिस जीव का । वह जीव मिथ्यादृष्टि आर्हतमत विरोधी जानना || कोई करे कोई भरे यह मान्यता जिस जीव की । वह जीव मिथ्यादृष्टि आर्हतमत विरोधी जानना || क्योंकि जीव कितनी ही पर्यायों से नष्ट होता है और कितनी ही पर्यायों से नष्ट नहीं होता है; इसलिए जो भोगता है, वही करता है या अन्य ही करता है - ऐसा एकान्त नहीं है । क्योंकि जीव कितनी ही पर्यायों से नष्ट होता है और कितनी ही पर्यायों से नष्ट नहीं होता है; इसलिए जो करता है, वही भोगता है अथवा अन्य ही भोगता है - ऐसा एकान्त नहीं है । जो करता है, वह नहीं भोगता - ऐसा जिसका सिद्धान्त है; वह जीव मिथ्यादृष्टि है और अरहन्त के मत के बाहर है, अनार्हत मतवाला है - ऐसा जानना चाहिए।

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