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सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार
१११ इसीप्रकार शुभ या अशुभ गुण तुझसे यह नहीं कहते कि तू हमें जान और आत्मा भी बुद्धि के विषय में आये हुए गुणों को ग्रहण करने नहीं जाता।
शुभ या अशुभ द्रव्य तुझसे यह नहीं कहते कि तू हमें जान और आत्मा भी बुद्धि के विषय में आये हुए द्रव्यों को ग्रहण करने नहीं जाता।
ऐसा जानकर भी यह मूढ़ जीव उपशमभाव को प्राप्त नहीं होता और कल्याणकारी बुद्धि को-सम्यग्ज्ञान को प्राप्त न होता हुआ स्वयं परपदार्थों को ग्रहण करने का मन करता है।
(३८३ से ३८६) कम्मं जं पुव्वकयं सुहासुहमणेयवित्थरविसेसं। तत्तो णियत्तदे अप्पयं तु जो सो पडिक्कमणं। कम्मंजं सुहमसुहं जम्हि य भावम्हि बज्झदि भविस्सं। तत्तो णियत्तदे जो सो पच्चक्खाणं हवदि चेदा।। जं सुहमसुहमुदिण्णं संपडि य अणेयवित्थरविसेसं। तं दोसं जो चेददि सो खलु आलोयणं चेदा।। णिच्चं पच्चक्खाणं कुव्वदि णिच्चं पडिक्कमदिजोय। णिच्चं आलोचेयदि सो हु चरित्तं हवदि चेदा।।
शुभ-अशुभ कर्म अनेकविध हैं जो किये गतकाल में। उनसे निवर्तन जो करे वह आतमा प्रतिक्रमण है। बँधगे जिस भाव से शुभ-अशुभ कर्म भविष्य में। उससे निवर्तन जो करे वह जीव प्रत्याख्यान है। शुभ-अशुभ भाव अनेकविध हो रहे सम्प्रति काल में। इस दोष का ज्ञाता रहे वह जीव है आलोचना ॥ जो करें नित प्रतिक्रमण एवं करें नित आलोचना ।
जो करें प्रत्याख्यान नित चारित्र हैं वे आतमा ॥ जो पूर्वकाल में किये गये अनेक प्रकार के ज्ञानावरणादिशुभाशुभकर्मों से स्वयं के आत्मा को दूर रखता है, वह आत्मा प्रतिक्रमण है।