Book Title: Gatha Samaysara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Smarak Trust

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Page 122
________________ सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार अधर्म ज्ञान नहीं है क्योंकि अधर्म कुछ जाने नहीं । बस इसलिए ही अधर्म अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ॥ काल ज्ञान नहीं है क्योंकि काल कुछ जाने नहीं । बस इसलिए ही काल अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें || आकाश ज्ञान नहीं है क्योंकि आकाश कुछ जाने नहीं । बस इसलिए ही आकाश अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ॥ अध्यवसान ज्ञान नहीं है क्योंकि वे अचेतन जिन कहे । इसलिए अध्यवसान अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ॥ नित्य जाने जीव बस इसलिए ज्ञायकभाव है। है ज्ञान अव्यतिरिक्त ज्ञायकभाव से यह जानना || ज्ञान ही समदृष्टि संयम सूत्र पूर्वगतांग भी । सधर्म और अधर्म दीक्षा ज्ञान हैं - यह बुध कहें ॥ ११५ शास्त्र ज्ञान नहीं है; क्योंकि शास्त्र कुछ जानता नहीं है; इसलिए ज्ञान अन्य है और शास्त्र अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं । शब्द ज्ञान नहीं है; क्योंकि शब्द कुछ जानता नहीं है; इसलिए ज्ञान अन्य है और शब्द अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं । रूप ज्ञान नहीं है; क्योंकि रूप कुछ जानता नहीं है; इसलिए ज्ञान अन्य है और रूप अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं। वर्ण ज्ञान नहीं है; क्योंकि वर्ण कुछ जानता नहीं है; इसलिए ज्ञान अन्य है और वर्ण अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं । गंध ज्ञान नहीं है; क्योंकि गंध कुछ जानती नहीं है; इसलिए ज्ञान अन्य है और गंध अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं । रस ज्ञान नहीं है; क्योंकि रस कुछ जानता नहीं है; इसलिए ज्ञान अन्य है और रस अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं । स्पर्श ज्ञान नहीं है; क्योंकि स्पर्श कुछ जानता नहीं है; इसलिए ज्ञान अन्य है और स्पर्श अन्य है - ऐसा जिनदेव कहते हैं।

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