Book Title: Gatha Samaysara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Smarak Trust

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Page 125
________________ गाथा समयसार ११८ बस इसलिए अनगार या सागार लिंग को त्यागकर। जुड़ जा स्वयं के ज्ञान-दर्शन-चरणमय शिवपंथ में। बहुत प्रकार के पाखण्डी (मुनि) लिंगों अथवा गृहस्थ लिंगों को धारण करके मूढजन यह कहते हैं कि यह लिंग मोक्षमार्ग है। परन्तु लिंग मोक्षमार्ग नहीं है; क्योंकि अरिहंतदेव लिंग को छोड़कर अर्थात् लिंग पर से दृष्टि हटाकर दर्शन-ज्ञान-चारित्र का सेवन करते हैं। ___ मुनियों और गृहस्थों के लिंग (चिह्न) मोक्षमार्ग नहीं; क्योंकि जिनदेव तो दर्शन-ज्ञान-चारित्र को मोक्षमार्ग कहते हैं। __इसलिए गृहस्थों और मुनियों द्वारा ग्रहण किये गये लिंगों को छोड़कर उनमें से एकत्वबुद्धि तोड़कर मोक्षमार्गरूप दर्शन-ज्ञान-चारित्र में स्वयं को लगाओ। (४१२) मोक्खपहे अप्पाणं ठवेहि तं चेव झाहि तं चेय। तत्थेव विहर णिच्चं मा विहरसु अण्णदव्वसु॥ मोक्षपथ में थाप निज को चेतकर निज ध्यान धर। निज में ही नित्य विहार कर परद्रव्य में न विहार कर|| हे भव्य ! तू अपने आत्मा को मोक्षमार्ग में स्थापित कर । तदर्थ अपने आत्मा का ही ध्यान कर, आत्मा में ही चेत, आत्मा का ही अनुभव कर और निज आत्मा में ही सदा विहार कर; परद्रव्यों में विहार मत कर। (४१३) पासंडीलिंगेसु व गिहिलिंगेसु व बहुप्पयारेसु। कुव्वंति जे ममत्तिं तेहिं ण णादं समयसारं ।। ग्रहण कर मुनिलिंग या गृहिलिंग विविध प्रकार के। उनमें करें ममता, न जानें वे समय के सार को॥ जो व्यक्ति बहुत प्रकार के मुनिलिंगों या गृहस्थलिंगों में ममत्व करते

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