Book Title: Gatha Samaysara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Smarak Trust

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Page 126
________________ सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार ११९ हैं अर्थात् यह मानते हैं कि ये द्रव्यलिंग ही मोक्ष के कारण हैं; उन्होंने समयसार को नहीं जाना । ( ४१४ ) ववहारिओ पुणणओ दोण्णि वि लिंगाणि भणदि मोक्खपहे । णिच्छयणओ ण इच्छदि मोक्खपहे सव्वलिंगाणि ।। व्यवहार से ये लिंग दोनों कहे मुक्तीमार्ग में । परमार्थ से तो नहीं कोई लिंग मुक्तीमार्ग में | व्यवहारनय मुनिलिंग और गृहीलिंग - दोनों को ही मोक्षमार्ग कहता है; परन्तु निश्चयनय किसी भी लिंग को मोक्षमार्ग नहीं मानता। (४१५ ) जो समयपाहुडमिणं पढिदूणं अत्थतच्चदो णादुं । अत्थे ठाही चेदा सो होही उत्तमं सोक्खं ॥ पद समयप्राभृत ग्रंथ यह तत्त्वार्थ से जो जानकर । निज अर्थ में एकाग्र हों वे परमसुख को प्राप्त हों ॥ जो आत्मा इस समयप्राभृत को पढ़कर, अर्थ और तत्त्व से जानकर इसके विषयभूत अर्थ में स्वयं को स्थापित करेगा; वह उत्तमसुख ( अतीन्द्रिय आनन्द) को प्राप्त करेगा । ( अनुष्टुभ् ) इदमेकं जगच्चक्षुरक्षयं याति पूर्णताम् । विज्ञानघनमानंदमयमध्यक्षतां नयत् ।। २४५ ।। (दोहा) ज्ञानानन्दस्वभाव को, करता हुआ प्रत्यक्ष | अरे पूर्ण अब हो रहा, यह अक्षय जगचक्षु ॥ २४५।। आनन्दमय विज्ञानघन शुद्धात्मारूप समयसार को प्रत्यक्ष करता हुआ यह एक अद्वितीय जगतचक्षु समयसार ग्रन्थाधिराज पूर्णता को प्राप्त हो रहा है ।

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