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सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार
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हैं अर्थात् यह मानते हैं कि ये द्रव्यलिंग ही मोक्ष के कारण हैं; उन्होंने समयसार को नहीं जाना ।
( ४१४ )
ववहारिओ पुणणओ दोण्णि वि लिंगाणि भणदि मोक्खपहे । णिच्छयणओ ण इच्छदि मोक्खपहे सव्वलिंगाणि ।। व्यवहार से ये लिंग दोनों कहे मुक्तीमार्ग में । परमार्थ से तो नहीं कोई लिंग मुक्तीमार्ग में | व्यवहारनय मुनिलिंग और गृहीलिंग - दोनों को ही मोक्षमार्ग कहता है; परन्तु निश्चयनय किसी भी लिंग को मोक्षमार्ग नहीं मानता। (४१५ )
जो समयपाहुडमिणं पढिदूणं अत्थतच्चदो णादुं । अत्थे ठाही चेदा सो होही उत्तमं सोक्खं ॥
पद समयप्राभृत ग्रंथ यह तत्त्वार्थ से जो जानकर । निज अर्थ में एकाग्र हों वे परमसुख को प्राप्त हों ॥ जो आत्मा इस समयप्राभृत को पढ़कर, अर्थ और तत्त्व से जानकर इसके विषयभूत अर्थ में स्वयं को स्थापित करेगा; वह उत्तमसुख ( अतीन्द्रिय आनन्द) को प्राप्त करेगा ।
( अनुष्टुभ् )
इदमेकं जगच्चक्षुरक्षयं याति पूर्णताम् । विज्ञानघनमानंदमयमध्यक्षतां
नयत् ।। २४५ ।।
(दोहा)
ज्ञानानन्दस्वभाव को, करता हुआ प्रत्यक्ष |
अरे पूर्ण अब हो रहा, यह अक्षय जगचक्षु ॥ २४५।।
आनन्दमय विज्ञानघन शुद्धात्मारूप समयसार को प्रत्यक्ष करता हुआ यह एक अद्वितीय जगतचक्षु समयसार ग्रन्थाधिराज पूर्णता को प्राप्त हो रहा है ।