Book Title: Gatha Samaysara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Smarak Trust

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Page 116
________________ १०९ सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार असुहो सुहो व रसोण तं भणदि रसय मंति सोचेव। ण य एदि विणिग्गहिदुं रसणविसयमागदं तु रसं॥ असुहोसुहोव फासोण तं भणदि फुससुमं ति सोचेव। ण य एदि विणिग्गहिदुं कायविसयमागदं फासं। असुहो सुहो व गुणोण तं भणदिबुज्झमं ति सोचेव । ण य एदि विणिग्गहिदुं बुद्धिविसयमागदं तु गुणं ।। असुहं सुहं व दव्वं ण तं भणदि बुज्झ मंति सो चेव । ण य एदि विणिग्गहिदुं बुद्धिविसयमागदं दव्वं ।। एयं तु जाणिऊणं उवसमं व गच्छदे मूढो। णिग्गहमणा परस्स य सयं च बुद्धिं सिवमपत्तो।। स्तवन निन्दा रूप परिणत पुद्गलों को श्रवण कर। मुझको कहे यह मान तोष-रु-रोष अज्ञानी करें। शब्दत्व में परिणमित पुद्गल द्रव्य का गुण अन्य है। इसलिए तुम से ना कहा तुष-रुष्ट होते अबुध क्यों ?|| शुभ या अशभ ये शब्द तुझसे ना कहें कि हमें सुन। अर आतमा भी कर्णगत शब्दों के पीछे ना भगे। शुभ या अशुभ यह रूप तुझसे ना कहे कि हमें लख। यह आतमा भी चक्षुगत वर्षों के पीछे ना भगे ॥ शुभ या अशुभ यह गंध तुम सूंघो मुझे यह ना कहे। यह आतमा भी घ्राणगत गंधों के पीछे ना भगे। शुभ या अशुभ यह सरस रंस यह ना कहे कि हमें चख। यह आतमा भी जीभगत स्वादों के पीछे ना भगे। शुभ या अशुभ स्पर्श तुझसे ना कहें कि हमें छू। यह आतमा भी कायगत स्वर्शों के पीछे ना भगे। शुभ या अशुभ गुण ना कहें तुम हमें जानो आत्मन् । -यह आतमा भी बुद्धिगत सुगुणों के पीछे ना भगे।

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