Book Title: Gatha Samaysara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Smarak Trust

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Page 119
________________ गाथा समयसार ११२ जिस भाव से भविष्यकालीन शुभाशुभकर्म बँधता है, उस भाव से निवृत्त होनेवाला आत्मा प्रत्याख्यान है। --- ___ वर्तमानकालीन उदयागत अनेक प्रकार के विस्तारवाले शुभाशुभकर्मों के दोष को चेतने वाला-छोड़नेवाला आत्मा आलोचना है। जो सदा प्रत्याख्यान करता है, सदा प्रतिक्रमण करता है और सदा आलोचना करता है; वह आत्मा वस्तुत: चारित्र है। (३८७ से ३८९) वेदंतो कम्मफलं अप्पाणं कुणदि जो दु कम्मफलं । सो तं पुणो वि बंधदि बीयं दुक्खस्स अट्ठविहं ।। वेदंतो कम्मफलं मए कदं मुणदि जो दु कम्मफलं । सो तं पुणो वि बंधदि बीयं दुक्खस्स अट्ठविहं ।। वेदंतो कम्मफलं सुहिदो दुहिदो य हवदि जो चेदा। सो तं पुणो वि बंधदि बीयं दुक्खस्स अट्ठविहं ।। जो कर्मफल को वेदते निजरूप माने करमफल । हैं बाँधते वे जीव दुःख के बीज वसुविध करम को॥ जो कर्मफल को वेदते माने करमफल में किया। हैं बाँधते वे जीव दुःख के बीज वसुविध करम को॥ जो कर्मफल को वेदते हों सुखी अथवा दुःखी हों। हैं बाँधते वे जीव दुःख के बीज वसुविध करम को॥ जो आत्मा कर्म के फल का वेदन करता हुआ कर्म के फल को निजरूप करता हैअर्थात् उसमें एकत्वबुद्धि करता है; वह आत्मा दुःख के बीजरूप आठ प्रकार के कर्मों को पुन: बाँधता है। __ जो आत्मा कर्म के फल का वेदन करता हुआ ऐसा जानता-मानता है कि मैंने कर्मफल किया; वह आत्मा दुःख के बीजरूप आठ प्रकार के कर्मों को पुन: बाँधता है।

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