Book Title: Gatha Samaysara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Smarak Trust
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गाथा समयसार उसीप्रकार अपने परिणामरूप चेष्टा को करता हुआ जीव भी दु:खी होता है, दुःख से अनन्य है।
(३५६ से ३६५) जह सेडिया दु ण परस्स सेडिया सेडिया य सा होदि। तह जाणगो दु ण परस्स जाणगो जाणगो सो दु॥ जह सेडिया दु ण परस्स सेडिया सेडिया य सा होदि। तह पासगो दु ण परस्स पासगो पासगो सो दु॥ जह सेडिया दुण परस्स सेडिया सेडिया य सा होदि। तह संजदो दु ण परस्स संजदो संजदो सो दु॥ जह सेडिया दु ण परस्स सेडिया सेडिया य सा होदि। तह दंसणं दु ण परस्स दंसणं दसणं तं तु ।। एवं तु णिच्छयणयस्स भासिदं णाणदंसणचरित्ते। सुणु ववहारणयस्य य वत्तव्वं से समासेण ॥ जह परदव्वं सेडदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण । तह परदव्वं जाणदि णादा वि सएण भावेण ।। जह परदव्वं सेडदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण । तह परदव्वं पस्सदि जीवो वि सएण भावेण ॥ जह परदव्वं सेडदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण । तह परदव्वं विजहदि णादा वि सएण भावेण ॥ जह परदव्वं सेडदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण । तह परदव्वं सद्दहदि सम्मदिट्ठी सहावेण ।। एवं ववहारस्स दु विणिच्छओ णाणदसणचरित्ते । भणिदो अण्णेसु वि पज्जएसु एमेव णादव्वो।
ज्यों कलई नहीं है अन्य की यह कलई तो बस कलई है। . ज्ञायक नहीं त्यों अन्य का ज्ञायक तो बस ज्ञायक ही है।

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