Book Title: Gatha Samaysara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Smarak Trust

View full book text
Previous | Next

Page 74
________________ निर्जराधिकार एमेव जीवपुरिसो कम्मरयं सेवदे सुहणिमित्तं । तो सो वि देदि कम्मो विविहे भोगे सुहुप्पाए। जह पुण सोच्चिय पुरिसो वित्तिणिमित्तंण सेवदेरायं । तो सो ण देदि राया विविहे भोगे सुहप्पाए। एमेव सम्मदिट्ठी विसयत्थं सेवदे ण कम्मरयं । तो सो ण देदि कम्मो विविहे भोगे सुहुप्पाए। आजीविका के हेतु नर ज्यों नृपति की सेवा करे। तो नरपती भी सबतरह उसके लिए सुविधा करे। इस ही तरह जब जीव सुख के हेतु सेवे कर्मरज। तो कर्मरज भी सबतरह उसके लिए सुविधा करे॥ आजीविका के हेतु जब नर नृपति सेवा ना करे। तब नृपति भी उसके लिए उसतरह सुविधा ना करे। त्यों कर्मरज सेवे नहीं जब जीव सुख के हेतु से। तो कर्मरज उसके लिए उसतरह सुविधा ना करे। जिसप्रकार इस जगत में कोई भी पुरुष आजीविका के लिए राजा की सेवा करता है तो वह राजा भी उसे अनेक प्रकार की सुखोत्पादक भोगसामग्री देता है; उसीप्रकार जीवरूपी पुरुष सुख के लिए कर्मरज का सेवन करता है तो वह कर्म भी उसे अनेक प्रकार की सुखोत्पादक भोगसामग्री देता है। जिसप्रकार वही पुरुष आजीविका के लिए राजा की सेवा नहीं करता तो वह राजा भी उसे अनेक प्रकार की सुखोत्पादक भोगसामग्री नहीं देता है; उसीप्रकार सम्यग्दृष्टि विषयभोगों के लिए कर्मरज का सेवन नहीं करता तो वह कर्म भी उसे अनेक प्रकार की सुखोत्पादक भोग-सामग्री नहीं देता। (२२८) सम्माद्दिट्टी जीवा मिस्संका होंति णिन्भया तेण । सत्तभयविप्पमुक्का जम्हा तम्हा दु णिस्संका।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130