Book Title: Gatha Samaysara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Smarak Trust

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Page 79
________________ ७२ ..............---- गाथा समयसार बहुत धूलवाले स्थान में रहकर शस्त्रों के द्वारा व्यायाम करता है तथा ताड़, तमाल, केला, बाँस, अशोक आदि वृक्षों को छेदता है, भेदता है; सचित्त व अचित्त द्रव्यों का उपघात (नाश) करता है। इसप्रकार नानाप्रकार के साधनों द्वारा उपघात करते हुए उस पुरुष के धूलि का बंध किसकारण से होता है ? - निश्चय से इस बात का विचार करो। उस पुरुष के जो तेलादि की चिकनाहट है; उससे ही उसे धूलि का बंध होता है, शेष शारीरिक चेष्टाओं से नहीं; ऐसा निश्चय से जानना चाहिए। इसप्रकार बहुत प्रकार की चेष्टाओं में वर्तता हुआ मिथ्यादृष्टि जीव अपने उपयोग में रागादिभावों को करता हुआ कर्मरूपी रज से लिप्त होता है, बँधता है। (२४२ से २४६) जह पुण सो चेव णरो हे सव्वम्हि अवणिदे संते। रेणुबहुलम्मि ठाणे करेदि सत्थेहिं वायाम।। छिंददि भिंददि य तहा तालीतलकयलिवंसपिंडीओ। सच्चित्ताचित्ताणं करेदि दव्वाणमुवघादं। उवघादं कुव्वंतस्स तस्स णाणाविहेहिं करणेहिं। णिच्छयदो चिंतेज्ज हु किं पच्चयगो ण रयबंधो। जो सो दुणेहभावो तम्हि णरे तेण तस्स रयबंधो। णिच्छयदो विण्णेयं ण कायचेट्टाहिं सेसाहिं। एवं सम्मादिट्ठी वढ्तो बहुविहेसु जोगेसु । अकरंतो उवओगे रागादी ण लिप्पदि रएण।। ज्यों तेल मर्दन रहित जन रेणू बहुल स्थान में। व्यायाम करता शस्त्र से बहुविध बहुत उत्साह से ॥ तरु ताल कदली बाँस आदिक वनस्पति छेदन करे। सचित्त और अचित्त द्रव्यों का बहुत भेदन करे।

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