Book Title: Gatha Samaysara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Smarak Trust

View full book text
Previous | Next

Page 77
________________ ७० ---माथा समयसार मुक्तिमगगत साधुत्रय प्रति रखें वत्सल भाव जो। वे आतमा वत्सली सम्यग्दृष्टि हैं यह जानना ॥ सद्ज्ञानरथ आरूढ़ हो जो भ्रमे मनरथ मार्ग में। वे प्रभावक जिनमार्ग के सद्दृष्टि उनको जानना ।। जो चेतयिता मोक्षमार्ग में स्थित निश्चय से सम्यग्दर्शन, ज्ञान व चारित्र- इन साधनों के प्रति अथवा व्यवहार से आचार्य, उपाध्याय और साधु - इन साधुओं के प्रति वात्सल्य करता है; वह वात्सल्य अंग का धारी सम्यग्दृष्टि जानना चाहिए। जो चेतयिता विद्यारूपी रथ पर आरूढ़ हुआ, मनरूपी रथ के पथ में भ्रमण करता है; वह जिनेन्द्र भगवान के ज्ञान की प्रभावना करनेवाला अर्थात् प्रभावना अंग का धारी सम्यग्दृष्टि जानना चाहिए। . (द्रुतविलंबित ) पदमिदं ननु कर्मदुरासदं सहजबोधकलासुलभं किल। तत इदं निजबोधकलाबलात् कलयितुंयततांसततं जगत् ॥१४३॥ (दोहा) क्रियाकाण्ड से ना मिले, यह आतम अभिराम। ज्ञानकला से सहज ही, सुलभ आतमाराम॥ अतः जगत के प्राणियो ! छोड़ जगत की आश। ज्ञानकला का ही अरे ! करो नित्य अभ्यास ॥१४३।। इस ज्ञानस्वरूप पदको कर्मों (क्रियाकाण्डों) से प्राप्त करना दुरासद है, संभव नहीं है; यह तो सहज ज्ञानकला से ही सुलभ है । इसलिए हे जगत के प्राणियो ! तुम इस ज्ञानपद को निजात्मज्ञान की कला के बल से प्राप्त करने का निरन्तर प्रयास करो, अभ्यास करो। -समयसार कलश पद्यानुवाद

Loading...

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130