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---माथा समयसार मुक्तिमगगत साधुत्रय प्रति रखें वत्सल भाव जो। वे आतमा वत्सली सम्यग्दृष्टि हैं यह जानना ॥ सद्ज्ञानरथ आरूढ़ हो जो भ्रमे मनरथ मार्ग में।
वे प्रभावक जिनमार्ग के सद्दृष्टि उनको जानना ।। जो चेतयिता मोक्षमार्ग में स्थित निश्चय से सम्यग्दर्शन, ज्ञान व चारित्र- इन साधनों के प्रति अथवा व्यवहार से आचार्य, उपाध्याय और साधु - इन साधुओं के प्रति वात्सल्य करता है; वह वात्सल्य अंग का धारी सम्यग्दृष्टि जानना चाहिए।
जो चेतयिता विद्यारूपी रथ पर आरूढ़ हुआ, मनरूपी रथ के पथ में भ्रमण करता है; वह जिनेन्द्र भगवान के ज्ञान की प्रभावना करनेवाला अर्थात् प्रभावना अंग का धारी सम्यग्दृष्टि जानना चाहिए। .
(द्रुतविलंबित ) पदमिदं ननु कर्मदुरासदं सहजबोधकलासुलभं किल। तत इदं निजबोधकलाबलात् कलयितुंयततांसततं जगत् ॥१४३॥
(दोहा) क्रियाकाण्ड से ना मिले, यह आतम अभिराम। ज्ञानकला से सहज ही, सुलभ आतमाराम॥ अतः जगत के प्राणियो ! छोड़ जगत की आश।
ज्ञानकला का ही अरे ! करो नित्य अभ्यास ॥१४३।। इस ज्ञानस्वरूप पदको कर्मों (क्रियाकाण्डों) से प्राप्त करना दुरासद है, संभव नहीं है; यह तो सहज ज्ञानकला से ही सुलभ है । इसलिए हे जगत के प्राणियो ! तुम इस ज्ञानपद को निजात्मज्ञान की कला के बल से प्राप्त करने का निरन्तर प्रयास करो, अभ्यास करो।
-समयसार कलश पद्यानुवाद