Book Title: Gatha Samaysara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Smarak Trust

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Page 35
________________ गाथा समयसार मोहयुक्त उपयोग के मिथ्यात्व, अज्ञान और अविरतिभाव-ये तीन परिणाम अनादि से ही जानना चाहिए। (९०-९१) एदेसु य उवओगो तिविहो सुद्धो णिरंजणो भावो। जं सो करेदि भावं उवओगो तस्स सो कत्ता। जं कुणदि भावमादा कत्ता सो होदि तस्स भावस्स। कम्मत्तं परिणमदे तम्हि सयं पोग्गलं दव्वं ।। यद्यपी उपयोग तो नित ही निरंजन शुद्ध है। जिसरूप परिणत हो त्रिविध वह उसी का कर्ता बने| आतम करे जिस भाव को उस भाव का कर्ता बने। बस स्वयं ही उस समय पुद्गल कर्मभावे परिणमे ।। यद्यपि आत्मा का उपयोग शुद्ध और निरंजन भाव है; तथापि तीन प्रकार का होता हुआ वह उपयोग जिस भाव को स्वयं करता है, उस भाव का वह कर्ता होता है। ___ आत्मा जिस भाव को करता है, उसका वह कर्ता होता है। उसके कर्ता होने पर पुद्गलद्रव्य अपने आप कर्मरूप परिणमित होता है। (९२-९३) परमप्पाणं कुव्वं अप्पाणं पि य परं करितो सो। अण्णाणमओ जीवो कम्माणं कारगो होदि।। परमप्पाणमकुव्वं अप्पाणं पि य परं अकुव्वंतो। सो णाणमओ जीवो कम्माणमकारगो होदि। पर को करे निजरूप जो पररूप जो निज को करे। अज्ञानमय वह आतमा पर करम का कर्ता बने। पररूप ना निज को करे पर को करे निजरूप ना। अकर्ता रहे पर करम का सद्ज्ञानमय वह आतमा ||

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