Book Title: Gatha Samaysara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Smarak Trust

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Page 37
________________ ३० गाथा समयसार --(९७) - - एदेण दु सो कत्ता आदा णिच्छयविदूहि परिकहिदो। एवं खलु जो जाणदि सो मुञ्चदि सव्वकत्तितं ।। बस इसतरह कर्ता कहें परमार्थ ज्ञायक आतमा। जो जानते यह तथ्य वे छोड़ें सकल कर्तापना॥ इसकारण निश्चयनय के विशेषज्ञ ज्ञानियों ने उक्त आत्मा को कर्ता कहा है-निश्चयनय से जो ऐसा जानता है, वह सर्व कर्तृत्व को छोड़ देता है। (९८ से १००) . ववहारेण दु आदा करेदि घडपडरधाणि दव्वाणि। करणाणि य कम्माणि य णोकम्माणीह विविहाणि ।। जदिसो परदव्वाणिय करेज्ज णियमेण तम्मओहोज्ज। जम्हा ण तम्मओ तेण सो ण तेसिं हवदि कत्ता। जीवो ण करेदि घडं व पडं णेव सेसगे दव्वे । जोगुवओगा उप्पादगा य तेसिं हवदि कत्ता। व्यवहार से यह आतमा घटपटरथादिक द्रव्य का। इन्द्रियों का कर्म का नोकर्म का कर्ता कहा। परद्रव्यमय हो जाय यदि पर द्रव्य में कुछ भी करे। परद्रव्यमय होता नहीं बस इसलिए कर्ता नहीं। ना घट करे ना पट करे ना अन्य द्रव्यों को करे। कर्ता कहा तत्रूपपरिणत योग अर उपयोग का॥ व्यवहार से आत्मा घट-पट-रथ इत्यादि वस्तुओं को, इन्द्रियों को, अनेक प्रकार के क्रोधादि द्रव्यकर्मों को और शरीरादि नोकर्मों को करता है। यदि आत्मा निश्चय से भी परद्रव्यों को करे तो वह नियम से तन्मय (परद्रव्यमय) हो जाये, किन्तु वह तन्मय (परद्रव्यमय) नहीं है; इसलिए वह उनका कर्ता भी नहीं है। आत्मा घट को नहीं करता, पट को नहीं करता और शेष अन्य द्रव्यों

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