Book Title: Gatha Samaysara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Smarak Trust

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Page 47
________________ गाथा समयसार अज्ञान का उदय है; जो तत्त्व का अश्रद्धान है, वह मिथ्यात्व का उदय है; जो अविरमण है, अत्याग का भाव है, वह असंयम का उदय है; जो मलिन उपयोग है, वह कषाय का उदय है। जो शुभ या अशुभ, प्रवृत्तिरूप या निवृत्तिरूप चेष्टा का उत्साह है, उसे योग का उदय जानो । इन उदयों के हेतुभूत होने पर जो कार्माणवर्गणागत पुद्गलद्रव्य ज्ञानावरणादि भावरूप से आठ प्रकार परिणमता है. वह कार्माणवर्गणागत पुद्गलद्रव्य जब जीव से बँधता है; तब जीव अपने अज्ञानमय परिणाम भावों का हेतु होता है । ४० ( १३७ से १४० ) जीवस्स दु कम्मेण य सह परिणामा हु होंति रागादी । एवं जीवो कम्मं च दो वि रागादिमावण्णा ।। एकस्स दु परिणामो जायदि जीवस्स रागमादीहिं । ता कम्मोदयहेदूहिं विणा जीवस्स परिणामो । जड़ जीवेण सह च्चिय पोग्गलदव्वस्स कम्मपरिणामो । एवं पोग्गलजीवा हु दो वि कम्मत्तमावण्णा ।। एकस्स दु परिणामो पोग्गलदव्वस्स कम्मभावेण । ता जीवभावहेदूहिं विणा कम्मस्स परिणामो ।। इस जीव के रागादि पुद्गलकर्म में भी हों यदी | तो जीववत् जड़कर्म भी रागादिमय हो जायेंगे ॥ किन्तु जब जड़कर्म बिन ही जीव के रागादि हों। तब कर्मजड़ पुद्गलमयी रागादिमय कैसे बनें ॥ यदि कर्ममय परिणाम पुद्गल द्रव्य का जिय साथ हो । तो जीव भी जड़कर्मवत् कर्मत्व को ही प्राप्त हो || किन्तु जब जियभाव बिन ही एक पुद्गल द्रव्य का । यह कर्ममय परिणाम है तो जीव जड़मय क्यों बने ? || जीव को कर्म के साथ ही रागादि परिणाम होते हैं अर्थात् कर्म और

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