Book Title: Gatha Samaysara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Smarak Trust

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Page 48
________________ कर्ताकर्माधिकार जीव दोनों मिलकर रागादिरूप परिणमित होते हैं' - यदि ऐसा माना जाये तो जीव और कर्म दोनों ही रागादिभावपने को प्राप्त हो जायें; परन्तु रागादिभावरूपतो एक जीव ही परिणमित होता है। इसकारण कर्मोदयरूप हेतु के बिना ही रागादिभाव जीव के परिणाम हैं। ___ इसीप्रकार 'पुद्गलद्रव्य का जीव के साथ ही कर्मरूप परिणाम होता है अर्थात् जीव और पुद्गल दोनों मिलकर कर्मरूप परिणमित होते हैं' - यदि ऐसा माना जाये तो पुद्गल और जीव दोनों ही कर्मत्व को प्राप्त हो जायें; परन्तु कर्मरूप परिणमित तो एक पुद्गलद्रव्य ही होता है, इसकारण जीवभाव के हेतु बिना ही कर्म पुद्गल का परिणाम है। (१४१) जीवे कम्मं बद्धं पुढे चेदि ववहारणयभणिदं। सुद्धणयस्स दु जीवे अबद्धपुढे हवदि कम्मं ।। कर्म से आबद्ध जिय यह कथन है व्यवहार का। पर कर्म से ना बद्ध जिय यह कथन है परमार्थ का॥ जीव में कर्म बँधा हुआ है और स्पर्शित है-ऐसा व्यवहारनय का कथन है और जीव में कर्म अबद्ध और अस्पर्शित है-यह शुद्धनय का कथन है । (१४२) कम्मं बद्धमबद्धं जीवे एवं तु जाण णयपक्खं। पक्खादिक्कंतो पुण भण्णदि जो सो समयसारो।। - अबद्ध है या बद्ध है जिय यह सभी नयपक्ष हैं। नयपक्ष से अतिक्रान्त जो वह ही समय का सार है। जीव में कर्म बद्ध या अबद्ध हैं - इसप्रकार तो नय पक्ष जानो; किन्तु जो पक्षातिक्रान्त कहलाता है, समयसार तो वह है, शुद्धात्मा तो वह है। (१४३) दोण्ह विणयाण भणिदंजाणदिणवरंतु समयपडिबद्धो। ण दुणयपक्खं गिण्हदि किंचि विणयपक्खपरिहीणो।

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