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गणितानुयोग : प्रस्तावना
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विक अध्यायों के अध्ययन हेतु विद्यार्थी को कुशल बना सकें। रासि, रिण रासिस्स आदि वर्णित है । ध्रुव राशि के गणितीय उसमें परिकर्म में सोलह प्रक्रियाओं का मूलभूत रूप में समावेश उपयोग सूर्य प्रज्ञप्ति प्रभृति ग्रन्थों में तथा धवला टीका में भी हुए किया गया है। ब्रह्मगुप्त ने इन्हें बीस प्रक्रियाओं में दिया है, जो हैं। हो सकता है, युग पद्धतिका सिद्धान्त ज्योतिष में विकास सभी उपयुक्त आठ मूलभूत प्रक्रियाओं के अन्तर्गत आ जाती ध्रुवराशि के आधार पर किया गया हो। षट्खंडागम में भी हैं । इस प्रकार परिकर्म का अर्थ का प्रयोग करणानुयोग एवं निम्नलिखित शब्दों से उक्त राशियाँ ध्वनित होती हैं। मिच्छाद्रव्यानुयोग में होता था। बारहवें अंग दृष्टिवाद के पाँच विभागों इट्ठी, अणंत, कोडि पुधत्तं, अभव सिद्धिया, सव्व लोगे, अन्तोमें से परिकर्म भी एक है। पंडित टोडरमल ने परिकर्माष्टक मुहत्तं, वग्गणा, फड्डयम्, समयपबद्ध, सागरोवमाणि आदि । इस गणित का पूर्ण विवरण गोम्मटसार जोवकाण्ड के पूर्व परिचय में प्रकार उदगम सामग्री में विश्वसंरचना तथा दर्शन विषयक राशियों दिया है। इनमें शून्य से संबन्धित परिकर्माष्टक की प्रक्रियाएँ का गहरा अध्ययन आवश्यक है। भी हैं।
जैन आगम में अस्तित्व वाली राशियाँ हैं-जीव राशि, पुद्गल ___द्रव्य के गुण विशेष का जो परिणमन किया जाता है इसे राशि आदि । ऐसी राशियों के प्रमाण को रचना राशियों द्वारा भी परिकर्म कहा गया है । जिस ग्रन्थ में गणित विषयक करण समझाया गया है जो संख्या प्रमाण एवं उपमाप्रमाण रूप होता सूत्र उपलब्ध होते हैं उसे भी परिकर्म कहते हैं। चन्द्रग्रहण आदि है। संख्याप्रमाण संख्येय, असंख्येय और अनन्त रूप है। उपमा के नियत काल से पूर्व ही जान लेने को परिकर्म विषयक कालो- प्रमाण पल्य, सागर समय-राशियों रूप, तथा सूच्यंगुल, प्रतरांगुल पक्रम कहते हैं। इसी प्रकार परिकर्म क्षेत्रोपक्रम आदि को भी घनांगुल, जगणी , जगप्रतर और धन लोक प्रदेश-राशियों रूप परिभाषित किया जाता है।
'है। इन दो प्रकार की रचना-राशियों के बीच का सम्बन्ध यह राशि (प्रा० रासि)
दिया गया है।
(log: पल्य) = (loga अंगुल) गणित इतिहास में इस शब्द पर ध्यान नहीं दिया गया। राशि सिद्धान्त को आज का सेट थ्योरी कह सकते हैं जो विश्व
सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय राशियों का जघन्य और उत्कृष्ट
प्रमाणों का है जिस रूप में अखिल लोक की रचना गणित द्वारा भर में गणित का आधारभूत विषय है। राशि सिद्धान्त का
प्रदर्शित की गयी है उदाहरणार्थमहत्व इसलिए और भी अधिक बढ़ा है कि उसका उप
नाम जघन्य
उत्कृष्ट योग आधुनिक विज्ञान एवं तकनीक, यांत्रिकी एवं कला आदि में
द्रव्यप्रमाण एक पुद्गल परमाणु हुआ है। जार्ज कैण्टर (१८४५-१६१८ ई०) आधुनिक राशि
समस्त द्रव्य राशि
राशि सिद्धान्त के मौलिक जन्मदाता माने जाते हैं।
क्षेत्रप्रमाण एक आकाश-प्रदेश
अनंतानंत आकाश षट्खंडागम में राशि के पर्यायवाची शब्द समूह, ओघ,
राशि
प्रदेश राशि पुज. वृन्द, सम्पात, समुदाय, पिण्ड, अवशेष, अभिन्न, तथा
कालप्रमाण सामान्य हैं । धवला में इस शब्द का अत्यधिक उपयोग हुआ है।
एक काल-समय
अनन्त काल-समय छांदोग्य उपनिषद में एक विज्ञान राशि विद्या भी है। राशि शब्द
राशि
राशि के उपयोग के बाद पैराशिक एवं पंचराशिक आदि रूप में गणित भावप्रमाण अपर्याप्त सूक्ष्म वनस्पति केवलज्ञान अविभागी आया।
की ज्ञान पर्याय की अवि- प्रतिच्छेद राशि । अभिधान राजेन्द्र कोष में राशि का प्रयोग समूह, ओघ, पुज,
भागी प्रतिच्छेद राशि । सामान्य वस्तुओं का संग्रह, वर्ग, शालि, धान्य राशि, जीवाजीव इसी प्रकार परावर्तन राशियां, रिक्त राशि, गुणस्थान राशि ,संख्यान राशि, आदि रूप में बतलाया गया है । तिलोय पण्णत्ति मार्गणास्थानों में जीव राशियाँ, चल, दोलनीय आदि ,परिमित, में भी, दोपडि राशियम, सलाय रासिदो, उपण्ण रासिम्, असं- अपरिमित आदि, गुणों के अविभागी प्रतिच्छेद रूप आदि प्रकार खेज्ज रासिदो, तेउक्काइय रासि, ध्रुव रासि, जोदिसिय जीव- की राशियाँ वर्णित हैं। उपरोक्त क्षेत्र और काल राशियों के १. जे० सि० को० भाग २, पृ० २२२-२२४
२. जै० ल०, भाग २, पृ० ६७४-६७५ ३. षट्०, १, २, १, १, पु० ३, पृ० ६
४. ति० ५०, १.१३१, तथा १.१३२ ५. धवला, १२, २ और ३ । और भी देखिये, धवला (५/प्र. २८) अतीत काल समय राशि को मिथ्यादृष्टि जीव राशि द्वारा
रिक्त किया बतलाते हैं।