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लोक- प्रज्ञप्ति
२३२. ५० कहि णं भंते ! बादरआउवकाइयाणं अपज्जत्ताणं ठाणा २३२. प्र० भगवन् ! अपर्याप्त बादर अपकायिकों के स्थान कहाँ
पण्णत्ता ?
कहे गये हैं ?
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अधोलोक
उ० गोयमा ! जत्थेव बादरआउक्काइयाणं पज्जतगाणं ठाणा तत्थेव बादरआउकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता । उववाएणं सव्वलोए ।
समुग्धाएणं सव्वलोए ।
ट्राचं लोयस्स असं भागे।"
२३३. प० कहि णं भंते! सुहुमआउक्काइयाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं २३३. प्र० भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त सूक्ष्म अप्कायिकों के
ठाणा पण्णत्ता ?
स्थान वहाँ कहे गये हैं ?
उ० गोयमा ! सुहुमआउक्काइया जे पज्जतगा जे य अपज्जत्तगा ते सव्वे एगविहा अविसेसा अणाणत्ता सव्वलोय परियावण्णगा पन्नत्ता समणाउसो !
उ० हे आयुष्मन् श्रमण गौतम ! जो सूक्ष्म अष्कायिक पर्याप्त और अपर्याप्त हैं वे सब एक प्रकार के हैं, किसी प्रकार की विशेषता वाले नहीं है, नाना प्रकार के नहीं है तथा सम्पूर्ण लोक - पण्ण०, पद २, सु० १५१-१५३ में व्याप्त हैं ।
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निव्यापारणं पम्चरस कम्मभूमीस बाचार्य पश्च पंच महाविदेहे एत्थ णं बादरते उक्काइयाणं पज्जत गाणं ठाणा पण्णता ।
उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे ।
सूत्र २३१-२३४
बादरते उकाइयाणं ठाणा
बादर तेजस्कायिक जीवों के स्थान
२३४. प० कहि णं भंते! बादरतेउकाइयाणं पज्जतगाणं ठाणा २३४. प्र० भगवन् ! पर्याप्त बादर तेजस्कायिकों के स्थान
पण्णत्ता ?
कहाँ है ?
उ० गोयमा ! सट्टाणेणं अंतोमणुस्सखेत्ते अड्ढाइज्जेसु दीव
समुन्याएवं लोधरस अभागे ।
सहाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे ।
प० कहि णं भंते ! बादरतेउकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ?
उ० गोयमा ! जत्थेव बादरतेजकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा तत्थेव बादरतेउकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पन्नत्ता । उबचाए लोस्स दोडका तिरियलोप प
समुग्धा
सम्बलोए।
सहाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे ।
उ० गौतम ! जहाँ पर्याप्त बादर अप्कायिकों के स्थान हैं। वहाँ पर अपर्याप्त बादर अप्कायिकों के स्थान कहे गये हैं ।
उत्त० अ० ३६, गाथा ८६ ।
उपपात की अपेक्षा - सम्पूर्ण लोक में उत्पन्न होते हैं । समुद्घात की अपेक्षा सम्पूर्ण लोक में सात करते हैं। स्वस्थान की अपेक्षा -लोक के असंख्यातवें भाग में इनके स्थान हैं।
उ० गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा से मनुष्य क्षेत्र में हैं अर्थात् अढाई द्वीप समुद्रों में हैं ।
पन्द्रह कर्मभूमियों में निराबाध हैं। पाँच महाविदेहों में कही है और कहीं नहीं हैं। इनमें पर्याप्त बादर तेजस्कायिकों के स्थान हैं ।
उपपात की उपेक्षा - लोक के असंख्यातवें भाग में उत्पन्न होते हैं।
समुद्घात की अपेक्षा - लोक के असंख्यातवें भाग में समुद्घात करते हैं ।
स्वस्थान की अपेक्षा - लोक के असंख्यातवें भाग में हैं । प्र० भगवन् ! अपर्याप्त बादर तेजस्कायिकों के स्थान
कहाँ है ?
उ० गौतम ! जहाँ पर्याप्त बादर तेजस्कायिकों के स्थान हैं । वहीं पर अपर्याप्त बादर तेजस्कायिकों के स्थान हैं ।
उपपात की अपेक्षा -लोक के दोनों ऊर्ध्व कपाटों में तथा तिर्यक्लोक के तट में (अन्तिम भाग में) उत्पन्न होते हैं।
समुद्घात की अपेक्षा - सम्पूर्ण लोक में समुद्वात करते हैं । स्वस्थान की अपेक्षा -लोक के असंख्यातवें भाग में हैं ।