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सूत्र १००२-१००३
उ०
तिर्यक लोक सूर्य के ओज की संस्थिति
तेरस मुहसानंतरे दिवसे, साइरेग-सत्तर-मुत्ता राई,
जम्वालसमु दिवसे भवइ, उक्कोसिया अट्ठारस मुहुत्ता राई भवइ । एवं भाणियव्वं ।' -सूरिय० पा० ८, सु० २६
सूरियस ओय संठई—
३. प० -ता कहं ते ओयसंठिई ? आहिए त्ति वएज्जा,
- तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ तं जहा
तायेंगे एवाहं
१. ता अणुसमयमेव सूरियस ओवा अन्य उप अण्णा अवेइ, एगे एवमाहंसु -
एमे पुण एवमाहंसु
२. ता अणुमुत्तमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ, अण्णा अवे, एगे एवमाहं
एगे पुण एवमाहं सु
३. ता अगुराईदियमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पम्जद, अण्णा अवेइ, एगे एवमाहंसु,
एगे पुण एवमाहंसु
४. ता अपश्यमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्ज अण्णा अवेद, एगे एवमाहंसु,
एगे पुण एवमाहंसु
५. ता अणुमाससेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ, अण्णा अवेs, एगे एवमाहंसु,
एगे पुण एवमाह सु
६. ता अणु उउमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ, अण्णा अबे एगे एवमाहंसु
एगे पुण एवमाहं
७. ता अणु अयणमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ, अण्णा अबेs. एगे एवमाहंसु,
एगे पुण एवमाहंसु -
८. ता अणुसंवच्छरमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ, अण्णा अवे, एगे एवमाहं.
भग. श. ५ उ. १ सु. ५-१३ ।
गणितानुयोग ४६३
जब तेरह मुहुर्त से कुछ कम का दिन होता है तब सत्रह मुहूर्त से कुछ अधिक की रात्रि होती है।
जब जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है तब उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है। इस प्रकार कहना चाहिए।
सूर्य के ओज (प्रकाश) की संस्थिति (एक रूप में रहने की सीमा)
२. प्र० ( सूर्य के ओज (प्रकाश) की संस्थिति कितनी है ? कहें ।
उ० – इस सम्बन्ध में ये पच्चीस प्रतिपत्तियाँ ( मान्यतायें ) कही गई है, यथा
उनमें से एक मान्यता वालों ने ऐसा कहा है
(१) सूर्य का प्रकाश प्रतिक्षण अन्य उत्पन्न होता है और अन्य विलीन होता है ।
एक (मान्यता बालों) ने फिर ऐसा कहा है
(२) सूर्य का प्रकाश प्रत्येक मुहूर्त में अन्य उत्पन्न होता है. और अन्य विलीन होता है ।
एक (मान्यता वालों) ने फिर ऐसा कहा है
(३) सूर्य का प्रकाश प्रत्येक अहोरात्र में अन्य उत्पन्न होता है और अन्य विलीन होता है ।
एक ( मान्यता वालों) ने फिर ऐसा कहा है
(४) सूर्य का प्रकाश प्रत्येक पक्ष में अन्य उत्पन्न होता है। और अन्य विलीन होता है।
एक (मान्यता वालों) ने फिर ऐसा कहा है
(५) सूर्य का प्रकाश प्रत्येक मास में अन्य उत्पन्न होता है और अन्य विलीन होता है ।
एक (मान्यता बालों) ने फिर ऐसा कहा है
(६) सूर्य का प्रकाश प्रत्येक ऋतु में अन्य उत्पन्न होता है और अन्य विलीन होता है ।
एक (मान्यता वालों) ने फिर ऐसा कहा है
(७) सूर्य का प्रकाश प्रत्येक अयन में अन्य उत्पन्न होता है और अन्य विलीन होता है ।
एक (मान्यता वालों ने फिर ऐसा कहा है
(८) सूर्य का प्रकाश प्रत्येक संवत्सर में अन्य उत्पन्न होता है। और अन्य विलीन होता है ।
मुरिय. पा. सु. २६