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सूत्र ५२-५३
काल लोक : मास के मुहूतों को हानि-वृद्धि
गणितानुयोग
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"मासस्स" मुहत्ताणं वद्धोअवद्धी
"मास के" मुहूतों की हानि-वृद्धि५२.५०-ता कहं ते बद्धोअवद्धी मुहुत्ताणं ? आहिए ति, ५२. प्र०-"मास के" मुहूर्तों की हानि-वृद्धि किस प्रकार होती
वदेज्जा। उ०-सा अट्ठ एगणवीसे मुहृत्तसए सत्तावीसं च सट्ठिभागे उ०-"नक्षत्र मास के" आठ सौ उगणीस मुहूर्त और एक मुहुत्तस्स आहिए ति वदेज्जा।'
मुहूर्त के साठ भागों में से सत्तावीस भाग जितनी हानि-वृद्धि
होती है। -सूरिय. पा. १, पाहु. १, सु. ८। मुहुत्ताणं-णामाई
मुहूर्तों के नाम५३. ५०-ता कहं ते मुहत्ताणं णामधेज्जा ? आहिए त्ति वएज्जा, ५३. प्र०-मुहूर्तों के नाम कौनसे हैं ? कहें, उ०-ता एगमेगस्स णं अहोरत्तस्स तोसं मुहत्ता पण्णत्ता, उ०-प्रत्येक अहोरात्र के तीस मुहूर्त कहे गये हैं, यथा
तं जहागाहाओ
गाथार्य१. रोद्दे, २. सेते, ३. मित्ते,
(१) रुद्र, (२) श्रेयान्, (३) मित्र, (४) वायु, (५) सुग्रीत, ४. वायु, ५. सुगीए, ६. अभिचंदे ।
(६) अभिचन्द, ७. महिंद, ८, बलवं, ६. बंभो,
(७) माहेन्द्र, (८) बलवान्, (९) ब्रह्मा, (१०) बहुसत्य, १०. बहुसच्चे, ११. चेव ईसाणे ॥
११. ईशान ॥१॥ १२. त? य, १३. भावियप्पा,
(१२) त्वष्टा, (१३) भावितात्मा, (१४) वैश्रमण, १४. वेसमणे, १५. वरुणे य, १६. आणंदे । (१५) वारुण, (१६) आनन्द, १७. विजए य, १८. वीससेणे,
(१७) विजय, (१८) विश्वसेन, (१६) प्राजापत्य, १६. पायावच्चे चेष, २०. उवसमे य ॥२॥ (२०) उपशम ॥२॥ २१. गंधव, २२. अग्गिवेसे,
(२१) गन्धर्व, (२२) अग्निवेश्य, (२३) शतवृषभ, २३. सयरिसहे, २४. आयवं च, २५. अममे य। (२४) आतपवान्, (२५) अमम,
(शेष पृष्ठ ७२४ का) यामो-रात्रंदिनस्म च चतुर्थभागो यद्यपि प्रसिद्धस्तथापीह त्रिभाग एव विवक्षितः । पूर्वरात्र-मध्यरात्रऽपररावलक्षणो यमाश्रित्य रात्रिस्त्रियामेत्युच्यते एवं दिनस्यापि निशा निशीथिनीरात्रिस्त्रियामा क्षणदाक्षणा ।
-स्थानांग टीका, अमर. कालवर्ग श्लोक ४ । याम=प्रहर का पर्यायवाची है। सामान्य मान्यता दिन और रात के चार प्रहर मानने की है किन्तु यहाँ 'याम" का अर्थ "विभाग" लिया गया है और दिन व रात्रि के तीन-तीन विभाग कहे गये हैं । रात्रि के तीन विभाग-रात्रि का प्रथम विभाग =पूर्वरात्र, रात्रि का द्वितीय विभाग=मध्यरात्र, रात्रि का तृतीय विभाग = अपररात्र दिन के तीन विभाग–दिन का प्रथम भाग-पूर्वान्ह, दिन का द्वितीय भाग-मध्यान्ह, दिन का तृतीय भाग–अपरान्ह । मुहूतों की हानि-वृद्धि का यह सूत्र खण्डित प्रतीत होता है, क्योंकि प्रस्तुत सूत्र के प्रश्नसूत्र में मुहूर्तों की हानि-वृद्धि का प्रश्न है, किन्तु उत्तरसूत्र में केवल नक्षत्र मासों के मुहूर्तों का ही कथन है।