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लोक- प्रज्ञप्ति
परिशिष्ट : लोकालोक की श्रेणियाँ सादिसपर्यवसितत्व आदि
लोपालोयसेटीणं सादीय सपज्जबसियाइत -
६. प० – सेढीओ णं भंते ! कि
(१) सादीयाओ सपज्जर सियाओ,
(२) सादीयाओ अपज्जवसियाओ,
(३) अणावीयाओ सपज्जवसियाओ,
(४) अगादीयामो अप
उ०- गोयमा ! (१) नो सादीयाओ सपज्जवसियाओ,
(२) नो साहया असियाओ
(३) नो अणादीयाओ सपज्जवसियाओ.
(४) अणादीयाओ अपज्जवसियाओ ।
एवं पाईण पडीणाययाओ वि जाव उड्ढमहाययाओ ।
प० - लोयागाससेढीओ णं भंते ! कि
(१) सादीयाओ सपज्जवसियाओ जाव(२-४) अणादीबाओ पाओ उ० – गोयमा ! (१) सादीयाओ सपज्जवसियाओ । (२) नो सादीयाओ अपज्जवसियाओ । (३) नो अणावीयाओ सपज्जवसियाओ ।
(४) नो अणादीयाओ सपज्जवसियाओ ।
एवं पाग पडीगावया विना उमाययाओ
प० - अलोयागाससेढीओ णं भंते ! कि
(१) सादीयाओ सपज्जवसियाओ - जाव (२४)
पाओ अपनाओ ?
उ०- गोयमा ! (१) सिय सादीयाओ सपज्जबसियाओ । (२) सिय सादीयाओ अपज्जवसियाओ ।
(३) सिय अणादीयाओ सपज्जवसियाओ । (४) सिय अणादीयाओ अपज्जवसियाओ ।
पाण पडणाययाओ दाहिणुत्तराययाओ य एवं चेव ।
नवरं - नो सादीयाओ सपज्जवसियाओ । सिय सादीयाओ अपज्जवसियाओ । सेसं तं चैव ।
उद्दमहापयाओ जहा ओहियाओ तब चउमंगे ।
- भग. स. २५, उ. ३, सु. ८८-९४
लोकालोक की श्रणिय सादिसपर्यवसितत्व आदि
प्र०- -भगवन् ! श्रेणियां क्या
(१) सादि सान्त है,
(२) सादि अनन्त है,
(३) अनादि सान्त है.
(४) अनादि अनन्त हैं ?
उ०- गौतम ! ( १ ) सादि सान्त नहीं हैं,
(२) सादि अनन्त नहीं हैं,
(३) अनादि सान्त नहीं हैं,
(४) अनादि अनन्त हैं ।
इसी प्रकार पूर्व से पश्चिम पर्यन्त लम्बी श्रेणियाँ भी
हैं - यावत् — उपर से नीचे तक लम्बी श्रेणियां भी हैं।
प्र०—- भगवन् ! लोकाकाश श्रेणियाँ क्या
(१) सादि सान्त हैं - यावत्
(२-४) अनादि अनन्त हैं ?
उ०- गौतम ! ( १ ) सादि सान्त हैं,
(२) सादि अनन्त नहीं हैं,
(३) अनादि सान्त नहीं हैं,
(४) अनादि अनन्त नहीं है ।
इसी प्रकार पूर्व से पश्चिम पर्यन्त लम्बी लोकाकाश श्रेणियाँ
भी हैं - यावत् - ऊपर से नीचे तक लम्बी लोकाकाश श्रेणियाँ भी हैं ।
प्र० - भगवन् ! अलोकाकाश श्रेणियाँ क्या
(१) सादि सान्त हैं - यावत्
( २-४ ) अनादि अनन्त हैं ?
सूत्र
उ०- गौतम ! (१) कभी सादि सान्त हैं,
(२) कभी सादि अनन्त हैं,
(३) कभी अनादि सान्त हैं,
(४) कभी अनादि अनन्त है।
इसी प्रकार पूर्व से पश्चिम पर्यन्त लम्बी अलोकाकाश श्रेणियाँ और दक्षिण से उत्तर पर्यन्त लम्बी अलोकाकाश श्रेणियां हैं।
विशेष - सादि सान्त नहीं हैं,
कभी सादि अनन्त हैं ।
रोष पूर्ववत् है।
जैसी सामान्य श्रेणियाँ हैं वैसी ही ऊपर से नीचे तक लम्बी अलोकाकाश श्रेणियों की चोमंगी हैं।