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सूत्र २१-२३
ऊर्व लोक : सहस्रार देवों के स्थान
गणितानुयोग
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सहस्सार देवाणं ठाणाई
सहस्रार देवों के स्थान२१. प०–कहि णं भंते ! सहस्सार देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं २१. प्र०-भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त सहस्रार देवों के ठाणा पण्णता?
स्थान कहाँ कहे गये हैं ? ५०-कहि णं भंते ! सहस्सार देवा परिवसंति ?
प्र०-भगवन् ! सहस्रार देव कहाँ रहते हैं ? । उ०-गोयमा ! महासुक्कस्स कप्पस्स उप्पि सपक्खि सपडि- उ० - गौतम ! महाशुक्र कल्प के ऊपर समान दिशा में
दिसि बहुइं जोयणाई-जाव-बहुगीओ जोयण कोडा- समान विदिशा में अनेक योजन-यावत्-अनेक क्रोडाक्रोडी कोडीओ उड्ढे दूरं उप्पइत्ता। एत्थ णं सहस्सारे णामं योजन ऊपर दूर जाने पर सहस्रार नाम का कल्प कहा गया है । कप्पे पण्णत्ते । पाईण-पडीणायए जहा बंभलोए ।
पूर्व-पश्चिम लम्बा ब्रह्मलोक जैसा है। णवर-छविमाणावास सहस्सा भवंतीतिमक्खायं ।' विशेष—यहाँ छ हजार विमान कहे गये हैं । वडेंसगा जहा ईसाणस्स ।
अवतंसक-ईशानकल्प के अवतंसक जैसे हैं। णवरं-मज्झे यऽत्थ सहस्सार वडेंसए।
विशेष--यहाँ मध्य में सहस्रारावतंसक हैं । एत्थ णं सहस्सार देवाणं ठाणा पण्णत्ता।
यहाँ सहस्रार देवों के स्थान कहे गये हैं। सेसं तहेव-जाव विहरति ।
शेष पूर्ववत् यावत् रहते हैं । –पण्ण. प. २, सु. २०४/१ सहस्सार देवेन्द वण्णओ
सहस्रार देवेन्द्र वर्णक२२. सहस्सारे यऽत्थ देविंदे देवराया परिवसइ ।
२२. यहाँ देवेन्द्र देवराज सहस्रार रहता है । जहा सणंकुमारे ।
शेष वर्णन सनत्कुमार जैसा है। णवरं-छण्हं विमाणावास सहस्साणं,
विशेष-छह हजार विमानों का, तीसाए सामाणिय साहस्सीणं,
तीस हजार सामानिक देवों का, चउण्ह य तीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीणं-जाव-विहरइ । इनसे चौगुने अर्थात् एक लाख बीस हजार आत्मरक्षक देवों
-पण्ण. प. २, सु. २०४/२ का-यावत्-आधिपत्य करता हुआ रहता है। आणय-पाणय देवाणं ठाणाइं
आनत-प्राणत देवों के स्थान२३.५०-कहिणं भंते ! आणय-पाणयाणं देवाण पज्जत्ताऽपज्ज- २३. प्र०-भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त आनत-प्राणत देवों , ताणं ठाणा पण्णता?
के स्थान कहाँ कहे गये हैं ? ५०-कहि णं भंते ! आणय-पाणय देवा परिवसंति ? प्र०-भगवन् ! आनत-प्राणत देव कहाँ रहते हैं ? उ०-गोयमा ! सहस्सारस्स कप्पस्स उप्पि सपक्खि सपडि- उ०-गौतम ! सहस्रारकल्प के ऊपर समान दिशा में
दिसि बहूई जोयणाई-जाव-बहुगीओ जोयण कोडा- समान विदिशा में अनेक योजन-यावत्-अनेक क्रोडाक्रोडी कोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता एत्थ णं आणय-पाणय योजन ऊपर दूर जाने पर आनत-प्राणत नाम के दो कल्प कहे नामेणं दुवे कप्पा पण्णत्ता।
गये हैं। पाईण-पडीणायया उदीण दाहिण वित्थिण्णा अद्ध चंद पूर्व-पश्चिम में लम्बे, उत्तर-दक्षिण में चौड़े, अर्ध चन्द्र के संठाण संठिया अच्चिमाली भासरासिप्पभा । आकार से स्थित, सूर्य के किरण समूह सदृश प्रभा वाले हैं। सेस जहा सणंकुमारे-जाव-पडिरूवा ।
शेष सनत्कुमार कल्प जैसा है-यावत्-प्रतिरूप है। तत्थ णं आणय-पाणय देवाणं चत्तारि विमाणावाससया वहाँ आनत-प्राणत देवों के चार सौ विमान कहे गये हैंभवंतीति मक्खायं ।-जाव-पडिरूवा।
यावत्-वे प्रतिरूप हैं। वडिसगा जहा सोहम्मे ।
अवतंसक-सौधर्म कल्प जैसे हैं ।
१
सम. ११६, सु.।
२
सम. १०६, सु. ४ ।