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सूत्र ४-५
काल लोक : पौरुषी-प्रमाण
गणितानुयोग
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गाहाओ
गाथार्थआसाढे मासे दुपया, पोसे मासे चउप्पया।
आषाढ मास में दो पाद प्रमाण, पौष मास में चार पाद प्रमाण । चित्तासोएसु मासेसु, तिपया हयइ पोरिसी ॥१३॥ आश्विन मास में तीन पाद प्रमाण, पौरुषी होती है। अंगुलं सत्तरत्तेणं पक्खेणं तु दुयंगुलं ।
सात दिन-रात में एक अंगुल, पक्ष में वो अगुल, वड्ढए हायए वा वि मासेणं चउरंगुलं ॥१४॥ मास में चार अंगुल, (पाद-छाया) की हानि और वृद्धि -उत्तरा. अ. २६, गा. १३-१४। होती है ।
(श्रावण मास से पौषमास तक (पाद-छाया की) वृद्धि, माघ
मास से आषाढ मास तक (पाद-छाया) की हानि ।) फग्गुण-पुण्णमासिणीए णं सूरिए चत्तालीसंगुलियं पोरिसिछावं फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सूर्य चालीस अंगुल प्रमाण पौरुषी निव्वट्टइत्ता णं चारं चरइ।
छाया करके गति करता है ।
-सम. ४०, सु.६ एवं कत्तियाए वि पुण्णिमाए ।
इसी प्रकार कार्तिक पूर्णिमा के दिन भी।
-सम. ४०, सु. ७ जहन्नुक्कोसिया पौरुसी
जघन्य और उत्कृष्ट पौरूषी५. ५०-जया णं भंते ! उक्कोसिया अद्धपंचममुहत्ता दिवसस्स ५. प्र०-भगवन् ! जब दिन और रात्रि की साढ़े चार मुहुर्त
वा राईए वा पोरिसी । तया णं कइभाग मुहुत्तभागे की उत्कृष्ट पौरूषी होती है तब एक मुहुर्त के कितने भाग घटतेणं परिहायमाणी परिहायमाणी जहनिया तिमुहुत्ता घटते दिन और रात्रि की तीन मुहुर्त की जधन्य पौरूषी होती दिवस्स वा राईए वा पोरीसी भवइ ? जया णं जहनिया तिमुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा और जब दिन और रात्रि की तीन मुहुर्त की जघन्य पौरूषी पोरिसी भवइ । तया णं कइभागमुहुत्तभागे णं परि- होती है तब एक मुहुर्त के कितने भाग बढ़ते-बढ़ते दिन और रात्रि बड्डमाणी परिवड्ढमाणी उपकोसिया अद्धपंचममुहुत्ता की साढ़े चार मुहुर्त की उत्कृष्ट पौरूषी होती है ?
दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ ? उ० -सुदंसणा ! जया णं उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता उ०-सुदर्शन ! जब दिन और रात्रि की साढ़े चार मुहुर्त
दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ, तया णं की उत्कृष्ट पौरूषी होती है तब एक मुहुर्त के एक सौ बावीसवें बावीससयभाग मुहुत्तभागेणं परिहायमाणी परिहाय- भाग जितनी घटती-घटती दिन और रात्रि की तीन मुहुर्त की माणी जहनिया तिमुहत्ता दिवसस्स वा राईए वा जघन्य पौरूषी होती है। पोरिसी भवइ । जया वा जहनिया तिमुहत्ता दिवसस्स वा राईए वा और जब दिन और रात्रि की तीन मुहूर्त की जघन्य पौरुषी पोरिसी भवइ तया णं बावीससय भाग मुहुत्त भागेणं होती है तब एक मुहुर्त के एक सौ बाबीसवें भाग जितनी बढ़तीपरिवड्डमाणी परिमड्ढमाणी उक्कोसिया अद्धपंचम- बढ़ती दिन और रात्रि की साढ़े चार मुहुर्त की उत्कृष्ट पौरूषी
मुहत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ। होती है। ०-कया णं भंते ! उक्कोसिया अद्धपंचममुहत्ता दिवसस्स प्र०-भगवन् ! दिन और रात्रि की साढ़े चार मुहुर्त की वा राईए वा पोरिसी भवइ ?
उत्कृष्ट पौरूषी कब होती है ? कया वा जहनिया तिमहत्ता दिवसस्स वा राईए वा तथा दिन और रात्रि की तीन महतं की जघन्य पौरुषी कब पोरिसी भवइ?
होती है ? 30-सुबंसणा ! जया उक्कोसए अट्रारस महत्तं दिवसे उ०-सुदर्शन ! जब उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन होता
भवइ जहनिया दुवालसमुहसा राई भवइ तया णं है और जघन्य बारह महर्त की रात्रि होती है तब उत्कृष्ट साढ़े