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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक
जंबुद्दीवरस ठाण-पमाणाइ
जम्बूद्वीप का स्थान एवं प्रमाणादि६. ५० (१) कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ?
६. प्र०-(१) भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप कहाँ है ? (२) के महालए णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ?
(२) भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप कितना विशाल है ? (३) कि संठिए णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ?
(३) भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप का संस्थान कैसा है ? (४) किमायारभाव पडोयारे णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे (४) भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप का आकार भाव-स्वरूप पण्णते?
कैसा कहा गया है ? उ० (१) गोयमा ! अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्व दीव-समुद्दाणं उ०—(१) गौतम ! यह जम्बूद्वीप सर्वद्वीप-समुद्रों के सर्वासब्वब्भंतराए।
भ्यन्तर बीच में है। (२) सव्वखुड्डाए।
(२) सबसे छोटा है। (३) वट्ट तेल्लापूयसंठाणसंठिए ।
(३) तेल में तले हुए पुए के आकार का गोल है। वट्ट रहचक्कवालसंठाणसंठिए ।
रथ के पहिये के संस्थान के समान गोल है। वट्ट पुक्खरकण्णिया संहाणसंठिए।
कमल की कणिका के आकार की तरह गोल है। वट्ट पडिपुण्ण चंद संठाणसंठिए।
परिपूर्ण चन्द्रमा के आकार की तरह गोल है । (४) एगं जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं ।'
(४) एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा है। तिण्णि जोयणसयसहस्साइं सोलससहस्साई दोणि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, य सत्तावीसे जोयणसए तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं एक सौ अट्ठाईस धनुष, कुछ अधिक साढ़े तेरह अंगुल की परिधि च धणुसयं तेरसअंगुलाई अद्धंगुलं च किंचि विसे- कही गयी है। साहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ।।
-जंबु० वक्ख० १, सु० ३ ७. ५० (१) जंबुद्दीवे णं भंते दीवे केवइयं आयाम-विक्खंभेणं? ७. प्र०-(१) जम्बूद्वीप नामक द्वीप का आयाम-विष्कम्भ
कितना है ? (२) केवइयं परिक्खेवेणं ?
(२) परिक्षेप कितना है ? (३) केवइयं उब्वेहेणं?
(३) उवध कितना है? (४) केवइयं उद्धं उच्चत्तणं ?
(४) ऊँचाई कितनी है ? (५) केवइयं सम्वग्गेणं पण्णत्ते ?
(५) सर्वपरिमाण कितना कहा गया है ? -- (शेष पृष्ठ १२३ का) (४) प्र०-कि संठिया गं भंते ! दीवसमुदा? (५) प्र०–किमाकारभावपडोयारा गं भंते ! दीवसमुद्दा णं पण्णत्ता ? (४) उ०-गोयमा ! जंबुद्दीवाइया दीवा, लवणाइया समुद्दा संठाणतो एकविह...... विधाणा, वित्थारतो अणेगविध विधाणा। (३) उ०-दुगुणादुगुणे पडुप्पायमाणा २ पवित्थरमाणा २ ओभासमाणवीचीया, बहु उप्पल-पउम-कुमुद-णलिण-सुभग सोगंधिय
पोंडरीय-महापोंडरीय-सतपत्त-सहस्सपत्त-पप्फुल्लकेसरोवचिता पत्तेयं पत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खत्ता पत्तेयं पत्तेयं वण
संडपरिक्खित्ता। (१) उ०-अस्सिं तिरियलोए । (२) उ०-असंखेज्जा दीव-समुद्दा संयभुरमणपज्जबसाणा पणभत्ता समणाउसो । (५) उ०-तत्थ णं अयं जंबुद्दीवे णाम दीवे दीव-समुद्दाणं अभिंतरिए सबखुड्डाए, वट्टे तेल्लापूयसंठाणसंठिए, वट्ट रहचक्क
वालसंठाणसंठिए, वट्टे, पुक्खरकण्णिया संठाणसंठिए, बट्टै पडिपुन्नचदसंठाणसंठिए, एक्कं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साई सोलस य सहस्साई दोण्णि य सत्तावीसे जोय णसए तिप्णियकोसे अट्ठावीसं
व धणुसयं तेरस अंगुलाई अद्ध गुलकं च किंचि विसेसाहियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ।। १ (क) सम० स० १, सु० १६। (ख) सम० सु० १२४ । २ (क) ठाणं० अ०१, सु० ५२ । (ख) भग० स० ६, उ०१, सु०, २.३। (ग) जीवा०प० ३, उ० १ ० १२४ ।