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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : पुष्करवरद्वीप वर्णन
सूत्र ७४३-७४५
उ०-गोयमा ! कालोयस्स णं समुद्दस्स उदके आसले मासले उ०-गौतम ! कालोदसमुद्र का पानी स्वादिष्ट, पुष्टिकारक
पेसले कालए मासरासिवण्णाभे पगतीए उदगरसेणं श्रेष्ठ, कृष्ण माष (उड़द) की राशि जैसे वर्ण वाला एवं प्राकृतिक पण्णत्ते,
पानी जैसे रस वाला कहा गया है । काल-महाकाला-एत्थ दुवे देवा महिड्ढीया-जाव- यहाँ काल और महाकाल नाम के महधिक-यावत् - पलिओवमद्वितीया परिवसंति ।
पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं। से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ-"कालोए समुद्दे इस कारण से गौतम ! यह कालोदसमुद्र कालोदसमुद्र कहा कालोए समुद्दे ।
जाता है। अवृत्तरं च णं गोयमा ! कालोए समुद्दे सासए-जाव- अथवा गौतम ! कालोदसमुद्र शाश्वत है-यावत् -नित्य है। णिच्चे । -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १७४
पुक्खरवरदीवो
पुष्करवरद्वीप
पुक्खरवरदीवस्स संठाणं
पुष्करवद्वीप का संस्थान७४४. कालोयं णं समुद्दे पुक्खरवरे णामं दीवे बट्ट वलयागारसंठाण- ७४४. वृत्त (गोल) एवं वलयाकार संस्थान से स्थित पुष्करवर
संठिए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति । नामक द्वीप कालोदसमुद्र को चारों ओर से घेरकर स्थित है। तहेव-जाव-समचक्कवालसंठाणसंठिते, नो विसमचक्कवाल- उसी प्रकार-यावत्- समचक्रकार संस्थान से स्थित है, संठाणसंठिए। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १७६ विषम चक्राकार संस्थान से स्थित नहीं है। पुक्खरवरदीवस्स विक्खंभ-परिक्खेवं
पूष्करवरद्वीप का विष्कम्भ और परिधि७४५. ५०-पुक्खरवरे णं भंते ! दीवे केवतियं चक्कवाल विक्खं- ७४५. प्र०-भगवन् ! पुष्करवरद्वीप की चक्राकार चौड़ाई और भेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ?
परिधि कितनी कही गई हैं ? उ०-गोयमा ! सोलस जोयणसतसहस्साई चक्कवाल विक्खं- उ०-गौतम ! सोलह लाख योजन की चक्राकार चौड़ाई भेणं पण्णत्ते।
कही गई है। गाहा-एगाजोयणकोडी, वाणउति खलु भवे सयसहस्सा। गाथार्थ - एक करोड़, बाण लाख, निव्यासी हजार, आठ
अउणाणउति च सहस्सा, अट्ठसया चउणउया परिक्खे- सौ चौरानवे योजन की परिधि पुष्करबरद्वीप की कही गई है। वेणं पण्णत्ते (परिरओ) पुक्खरवरस्स ।
---जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १७६
परिधि
१ प्र०-कालोयस्स णं भंते ! समुदस्स केरिसए अस्साएणं पण्णते ? उ०--गोयमा ! आसले पेसले मासले कालए मासरासिवण्णाभे पगतीए उदगरसेणं पण्णत्ते ।
--जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १८७ २ भग. स. ५ उ. १ सु. २६ ।
३ सूरिय. पा. १६, सू. १०० । ४ सूरिय. पा. १६, सू. १००।