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________________ ३७२ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : पुष्करवरद्वीप वर्णन सूत्र ७४३-७४५ उ०-गोयमा ! कालोयस्स णं समुद्दस्स उदके आसले मासले उ०-गौतम ! कालोदसमुद्र का पानी स्वादिष्ट, पुष्टिकारक पेसले कालए मासरासिवण्णाभे पगतीए उदगरसेणं श्रेष्ठ, कृष्ण माष (उड़द) की राशि जैसे वर्ण वाला एवं प्राकृतिक पण्णत्ते, पानी जैसे रस वाला कहा गया है । काल-महाकाला-एत्थ दुवे देवा महिड्ढीया-जाव- यहाँ काल और महाकाल नाम के महधिक-यावत् - पलिओवमद्वितीया परिवसंति । पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं। से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ-"कालोए समुद्दे इस कारण से गौतम ! यह कालोदसमुद्र कालोदसमुद्र कहा कालोए समुद्दे । जाता है। अवृत्तरं च णं गोयमा ! कालोए समुद्दे सासए-जाव- अथवा गौतम ! कालोदसमुद्र शाश्वत है-यावत् -नित्य है। णिच्चे । -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १७४ पुक्खरवरदीवो पुष्करवरद्वीप पुक्खरवरदीवस्स संठाणं पुष्करवद्वीप का संस्थान७४४. कालोयं णं समुद्दे पुक्खरवरे णामं दीवे बट्ट वलयागारसंठाण- ७४४. वृत्त (गोल) एवं वलयाकार संस्थान से स्थित पुष्करवर संठिए सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति । नामक द्वीप कालोदसमुद्र को चारों ओर से घेरकर स्थित है। तहेव-जाव-समचक्कवालसंठाणसंठिते, नो विसमचक्कवाल- उसी प्रकार-यावत्- समचक्रकार संस्थान से स्थित है, संठाणसंठिए। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १७६ विषम चक्राकार संस्थान से स्थित नहीं है। पुक्खरवरदीवस्स विक्खंभ-परिक्खेवं पूष्करवरद्वीप का विष्कम्भ और परिधि७४५. ५०-पुक्खरवरे णं भंते ! दीवे केवतियं चक्कवाल विक्खं- ७४५. प्र०-भगवन् ! पुष्करवरद्वीप की चक्राकार चौड़ाई और भेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? परिधि कितनी कही गई हैं ? उ०-गोयमा ! सोलस जोयणसतसहस्साई चक्कवाल विक्खं- उ०-गौतम ! सोलह लाख योजन की चक्राकार चौड़ाई भेणं पण्णत्ते। कही गई है। गाहा-एगाजोयणकोडी, वाणउति खलु भवे सयसहस्सा। गाथार्थ - एक करोड़, बाण लाख, निव्यासी हजार, आठ अउणाणउति च सहस्सा, अट्ठसया चउणउया परिक्खे- सौ चौरानवे योजन की परिधि पुष्करबरद्वीप की कही गई है। वेणं पण्णत्ते (परिरओ) पुक्खरवरस्स । ---जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १७६ परिधि १ प्र०-कालोयस्स णं भंते ! समुदस्स केरिसए अस्साएणं पण्णते ? उ०--गोयमा ! आसले पेसले मासले कालए मासरासिवण्णाभे पगतीए उदगरसेणं पण्णत्ते । --जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १८७ २ भग. स. ५ उ. १ सु. २६ । ३ सूरिय. पा. १६, सू. १०० । ४ सूरिय. पा. १६, सू. १००।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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