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सूत्र ७४६-७५१
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तिर्य लोक पुष्करवरद्वीप वर्णन
क्लरवरदीवरस वेइया वणखंडो य
पुष्करवरद्वीप की वेदिका और वनखण्ड
०४६ से एगाए पमवरवेदिवाए एव वणसंग सम्ब७४६. वह एक पद्मवेदिका और एक वनखण्ड से चारों ओर से घिरा हुआ स्थित है। दोनों का वर्णन (यहाँ कहना चाहिए ) । सु. १७६
समता संपरिक्खित्तेणं चिट्ठइ । दोण्ह वि वण्णओ । — जीवा. पडि. ३, उ. २, पुक्खरवरदीवस्स चत्तारि दारा७४७. १० - पुक्खरवरस्स दीवस्स णं भंते ! कति दारा पण्णत्ता ? उ०- गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तं जहा - १. विजए, २. अपराजिते ।
२.
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प० - कहि णं भंते ! पुक्खरवरस्स दीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते ?
३० गोमा क्वरवरदीव पुरच्छिमपेरते, रोदसमुह पुरमिद्धस्स पश्चरिथमेणं, एव पं पुरखरबरवीयरस विजए णानं दारे पण्णत्ते ।
एत्थ
तं चैव सव्वं, एवं चत्तारि विदारा । सीया- सीओदा णत्थि भाणियव्वाओ ॥
चउन्हं दाराणमंतरं७४८.५० - पुक्खरवरस्स णं भंते! दीवस्स दारस्स य दारस्स य, एस केवइए अमाहाए अंतरे पण ? उ०- गोयमा ! अडयालीसं च जोयणसयसहस्साइं बावीससहरसाई बसारि व अउतरे जोयणसए दारस्य दारस्स य अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ।
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- जीवा पडि ३, उ. २, सु. १७४
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कालोदसमुहस्स पुक्खरवरदीवस्स य पएसाणं परोप्परं फुसणा
-७४६. "पदेसा दोह वि पुट्ठा" - जीवा. पडि ३, उ. २, सु. १७६ कालोदसमुदस्स पुक्खर बरवीयरस य जीवाणं अण्णमण्णे उववज्जण
उ.
७५०. जीवा दोसु भाणियव्वा जीवा. पडि. ३,
२, सू. १७६
पुक्रवरदीवस णाम हेऊ
७५१. १० सेकेणं ते! एवं पुष्यति'कारवरदीचे पुक्खरवरदीवे ?
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गणितानुयोग ३७३
— जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १७४ महानदियों का कथन नहीं करना चाहिए। चारों द्वारों का अन्तर
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पुष्करवरद्वीप के चार द्वार
७४७. प्र० – भगवन् ! पुष्करवरद्वीप के द्वार कितने कहे गये हैं ? उ०- गौतम ! चार द्वार कहे गये हैं, यथा - (१) विजय, (२) वैजयन्त, (३) जयंत, (४) अपराजित ।
प्र० - भगवन् ! पुष्करवरद्वीप का विजय नामक द्वार कहाँ कहा गया है ?
उ०- गौतम ! पुष्करवरद्वीप के पूर्वान्त में एवं पुष्करोद समुद्र के पूर्वाध के पश्चिम में पुष्करवरदीप का विजय नामक द्वार कहा गया है ।
उसका सब वर्णन पूर्ववत् है । इसी प्रकार चारों द्वारों का वर्णन भी पूर्ववत् कहना चाहिए। किन्तु यहाँ शीता और शीतोदा
७४८. भगवन् ! पुष्करवरद्वीप के एक द्वार से दूसरे द्वार का व्यवहित अन्तर कितना कहा गया है ?
उ०- गौतम ! पुष्करवरद्वीप के चारों द्वारों का व्यवहित अन्तर (अर्थात् प्रत्येक द्वार का अन्तर) अड़तालीस लाख, बाईस हजार, चार सौ उनसत्तर योजन का है ।
कालोदसमुद्र और पुष्करवरद्वीप के प्रदेशों का परस्पर स्पर्श
७४९. दोनों के प्रदेश परस्पर स्पृष्ट हैं ।
कालोदसमुद्र और पुष्करवरद्वीप के जीवों की एक दूसरे में उत्पत्ति
७५०. दोनों में जीव (मर-मरकर उत्पन्न होते हैं - ऐसा ) कहना चाहिए।
पुष्करवरद्वीप के नाम का हेतु
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७२१. प्र० भगवन् ! पुष्करवरद्वीप की पुष्करवरद्वीप ही क्यों कहा जाता हैं ?
१ सब्वेसि पि णं दीव-समुद्दाणं वेइयाओ दो गाउयाई उड्ढं उच्चतेणं पण्णत्ताओ । २ गाहा— अडयालसयसहस्सा, बावीसं खलु भवे सहस्साई ।
अउणुत्तरा य चउरो, दारंतरं च पुक्खरवरस्स ।।
- जीवा. पडि. ३ उ. २ सु. १७४