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लाक प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक ज्योतिषिकदेव वर्णन
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वाणमंतराणं देवानं काममोहितो अरियाणं वाणव्यन्तर देवों के काम-भोगों से असुरेन्द्र को छोड़कर भवणवासीणं देवाणं एत्तो अनंतगुणविसितरा चैव भवनवासी देवों के काम-भोग अनन्तगुण विशिष्टतर है । कामभोगा ।
अरिजियाणं भवणवासी देवानं काममोहितो असुरकुमाराणं देवाणं एतो अनंतगुणविसिट्टतरा चैव कामभोगा ।
असुरकुमाराणं देवाणं कामभोगेहिंतो गहगण नक्खत्तताराख्याणं जो सिवानं देवानं एतो अनंतगुणविसिद्ध तरा चैव कामभोगा ।
महगण-नारायाणं देवानं काममोहितो चंदिमसूरियाणं जाणं जोइसराई एसो अनंतगुण विसितरा चैव कामभोगा ।
चंदिम-सूरिया णं गोयमा ! जोइसिंदा जोइसरायाणो एरिसे कामभोगे पञ्चभवमाणाविहरति । सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं जाव- विहरइ ।
- भग. स. १२, उ. ६, सु. ८ चंद-सूर-गह-णवखल-साराणं अम्गमहिसीओ दिव्य भोगाई य
४६. ५० - चंदस्स णं भंते ! जोइसिंदस्स जोइसरन्नो कति अग्गमहिसीओ ताओ ?
उ०- गोयमा ! चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा(१) चंदप्पभा, (२) दोसिणाभा, (३) अच्चिमाली, (४) पकरा ।
एत्थ णं एगमेगाए देवीए चत्तारि चत्तारि देविसाहस्सीओ परिवारे य ।
पभूणं ततो एगमेगा देवी अण्णाई चत्तारि चत्तारि देविसहस्साई परिवारं विविए ।
एवामेव सपुव्वावरेणं सोलस देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ सेतं तुडिए ।
प० प णं भंते! पदे जोइसिये जोइसराया चंदडसए विमाणे समाए हम्माए चंसि सोहासांसि डिएम सडि दिया भोग भोगाई मुजमाणे बिहरितए ? उ०पो तिग सम
प० सेकेणट्टणं भंते ! एवं बुच्चइ - " तो पभू चन्दे जोड़सिदे जोइसराया दस विमा समाए तुम्माए
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(क) सूरिय. पा. २० सु० १०५ ।
२ (क) ठाणं ४ उ. १ सु. २७३ ।
सूत्र ६४८-६४६
असुरेन्द्र वर्जित भवनवासी देवों के काम-भोगों से असुरेन्द्र रूप देवों के काम-भोग अनन्तगुण विशिष्टतर है ।
असुरेन्द्र रूप देवों के काम-भोगों से ग्रहगण नक्षत्र तारारूप ज्योतिषी देवों के काम-भोग अनन्तगुण विशिष्टतर है।
ग्रहगण नक्षत्र तारारूप ज्योतिषी देवों के काम-भोगों से चन्द्र-सूर्यो के काम-भोग अनन्तगुण विशिष्टतर हैं।
हे गौतम ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र-सूर्य इस प्रकार के काम-भोगों का अनुभव करते हुए विहरते हैं।
हे भगवन् ! उनके काम-भोगों का सुख इसी प्रकार है । भगवान् गौतम और श्रमण भगवान् महावीर —- यावत्-विहरते हैं ।
चन्द्र-सूर्य ग्रह-नक्षत्र ताराओं की अग्रमहिवियाँ और उनके दिव्य काम भोग
६४६. प्र०- - हे भगवन् ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र की कितनी अग्रमहिषियां कही गई हैं ?
उ०- हे गौतम! चार अग्रमहिषियाँ कही गई हैं, यथा(१) चन्द्रप्रभा, (२) दो: ष्णाभा (३) अर्चिमाली, (४) प्रभंकरा ।
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यहाँ प्रत्येक देवी के चार चार हजार देवियों का परिवार है।
प्रत्येक देवी अन्य चार चार हजार देवियों के परिवार की विकुर्वणा करने में समर्थ है।
इस प्रकार पहले पीछे की मिलाकर सोलह हजार देवियाँ कही गई हैं । यह चन्द्र का अन्तःपुर है ।
प्र० - हे भगवन् ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान की सुधर्मा सभा में चन्द्रसिहासन पर अग्रमहिषियों के साथ दिव्य भोग भोगते हुए विहरने में समर्थ है ? उ०- ऐसा करने में समर्थ नहीं है ।
प्र० - हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि ज्योतिष्येन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान की सुधर्मा
(ख) चंद. पा. २० सु. १०५ ।
(ख) सूरिय. पा. २० सु. १०५ ।