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लोक- प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक कूट वर्णन
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मूले एवं जोपणसहस्सं पंच व एमसीए जोवनलए किषि विसेसाहिए परिवे
मझे एवं जोपणसहस्सं एवं प छलसीमं जोपणस किचि विसे परिक्लेवेणं ।
उपि ससइहागउए जोपणसए किचि विसे परिक्खेवेणं ।
मुले व संखिते, उचितए गोवुन्छसंडासंठिए सम्बरणामए अच्छे-जाय-पडिये।
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से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेणं सव्वओ समता संपरिक्खित्ते ।
सिद्धायणस्स स्स में उचि बहुसमरमणिजे भूमिभागे पण जायन्तरसणं बहुसमरमणिज्जरस भूमि भागस्स बहुमज्झदेसभाए - एत्थ णं महं एगे सिद्धाय यणे पण्णत्ते ।
उ०- गोयमा ! भरकूरस पुरत्ययेणं, सिद्धाय नकूडस्स पञ्चत्थिमेणं, एत्थ णं चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए हिमतकडे णामं कुठे प
एवं जो चैव सिद्धाययणकूडस्स उच्चत्तविवसंभ परिवेो बहुसमरम गन्नरस भूमिभागस्स मन्देशमाए-एल्य णं महं एमे पासा
सूत्र ४३३-४३४
मूल में पन्द्रह सौ इक्यासी योजन से कुछ अधिक इसकी
परिधि है ।
बाजोगाई अजोषणं च उई उच्चतेगं इक्डतीसं जोयणाई कोसं च विक्खंभेणं । अभुग्गय मूसिअपहसिए विव विविहमणिरयण-भक्तिजिसे विजय-जयंती महाग छताछतलिए तुरंगे, गगणतलम भिलंघमाणसिहरे, जालंतरयणपंज सम्मिलिए मरियमभिजाए, विवसिय पुण्डरीच तिलय रयगड चंदचितं गाणामणिमयदामाल किए तोच सबर-तणिज्जवल वागावडे, सुहफा से सस्सिरीअरूबे पासाईए- जाव- पडिरूवे ।
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मध्य में इग्यारह सौ छियासी योजन से कुछ कम की परिधि है ।
ऊपर सात सौ इकरानवें योजन से कुछ कम की परिधि है
',
पणास जोपणा आयामेणं, पणवीसं जोषणाई दिलमेगं छत्तीसंजोयना उद्धं उच्चले जाव विपडिमा वण्णओ भाणियव्वो । जंबु० बक्ख० ४, सु० ७५ चुल्ल हिमवंतकूडस्स अवट्टिई पमाणं च ४३४.५० ते हिमवंते वासहयम्वए स्लहिम ४३४.२० हे भगवन! क्षुद्र व -कहि णं ! चुल्लहिमवंते वर्षधर वंतकडे णामं कूडे पण्णत्ते ? कूट नामक कूट कहाँ कहा गया है ?
यह मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त और ऊपर से पतला है। गाय की पूंछ के आकर का है सर्व रत्नमय है स्वच्छ हैयावत – सुन्दर है ।
यह एक पद्मवश्वेदिका एवं एक बनखण्ड से सभी ओर से घिरा हुआ है।
उस सिद्धायतन कूट पर अधिक सम रमणीय भुभाग कहा गया है यावत् उस अधिक सम रमणीय भूभाग के ठीक मध्य भाग में एक महान् सिद्धायतन कहा गया है ।
वह सिद्धायतन पचास योजन लम्बा है, पच्चीस योजन चौड़ा है, छत्तीस योजन ऊपर की ओर ऊँचा है- यावत्-यहाँ जिन प्रतिमा का वर्णन कहना चाहिए।
क्षुद्र हिमवान कूट की अवस्थिति और प्रमाणपर्वत पर क्षुद्र हिमवान्
उ०- हे गौतम! भरतकूट से पूर्व में सिद्धायतन कूट से पश्चिम में क्षुद्र हिमवान् वर्षधर पर्वत पर क्षुद्र हिमवान् कूट नामक कूट कहा गया है ।
सिद्धायतन सूट की ऊंचाई चौड़ाई और परिधि आदि जो पहले कही गई है इसकी भी नही है यावत्-अधिक समरमणीय भूभाग के ठीक मध्य भाग में एक महान् प्रासादावतंसक कहा
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गया है ।
यह साड़े बासठ योजन ऊपर की ओर ऊँचा है और सवा इकतीस योजन चौड़ा है।
वह प्रबल एवं शुभ्रप्रभापटल के कारण मानो हँस रहा है । विविध प्रकार के मणिन्नों से जिसकी मिलियों चित्रित है, बापू से उड़ती हुई विजय वैजयंती पताकाओं एवं छत्रातिछत्रों (छत्रों के ऊपर बने छात्रों से सुशोभित है, ऊँचा है, जिसका शिखर गगन तल को छूने वाला है, जिस पर जालियों बीच खुले हुए रामपिंजर के समान मणि-शनों की स्तुपिका है, यह विकसित शतपत्रपुण्डरीक तिलक एवं रत्नमय अर्धचन्द्रों से चित्रित है, नाना मणिमय मालाओं से अलंकृत है, उसके अन्दर और बाहर स्निग्ध हीरे एवं रक्तसुवर्ण की मनोहर बालुका के पटल हैं ।
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