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सूत्र ४६४-४६५
तिर्यक् लोक : कूट वर्णन
गणितानुयोग
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सिद्धाययणकूडस्स अवट्रिई पमाणं च
सिद्धायतनकूट की अवस्थिति और प्रमाण४६४. ५०-कहि गं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दीहवेयड्ढ- ४६४. प्र०-हे भगवन् ! जम्बूद्वीप द्वीप में भरतक्षेत्र में दीर्घ
पव्वए सिद्धाययणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ? वैताढ्यपर्वत पर सिद्धायतनकूट नाम का कूट कहाँ कहा गया है ? उ०-गोयमा ! पुरथिम-लवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, दाहिण- उ-हे गौतम ! पूर्वी लवणसमुद्र से पश्चिम में दक्षिणार्ध
ड्ढभरहकूडस्स पुरथिमेणं-एत्थ णं जंबुद्दीवे दोवे भरत कूट से पूर्व में जम्बूद्वीप द्वीप के भरत क्षेत्र में दीर्घ वैताढ्य भारहे वासे दोहवेयड्ढपव्वए सिद्धाययणकूडे णामं कूडे पर्वत पर सिमायतनकूट नाम का कूट कहा गया है । पण्णत्ते। छ सक्कोसाई जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं ।
यह छः योजन और एक कोश ऊँचा है। मूले छ सक्कोसाइं जोयणाई विक्खंभेणं ।
मूल में छ: योजन और एक कोश चौड़ा है। मज्झे देसूणाई पंच जोयणाई विक्खंभेणं ।
मध्य में पाँच योजन से कुछ कम चौड़ा है। उरि साइरेगाइं तिण्णि जोयणाई विक्खंभेणं । ऊपर तीन योजन से कुछ अधिक चौड़ा है। मूले देसूणाई बाबीसं जोयणाई परिक्खेवेणं ।
मूल में बाईस योजन से कुछ कम की परिधि वाला है। मज्झे देसूणाई पण्णरस जोयणाई परिक्खेवेणं ।
मध्य में पन्द्रह योजन से कुछ कम की परिधि वाला है। उरि साइरेगाई णव जोयणाई परिक्खेवेणं ।
ऊपर नौ योजन से कुछ अधिक की परिधि वाला है । मूले वित्थिण्णे, मज्झे संखित्ते, उपि तणुए, गोपुच्छ- मूल में विस्तृत, मध्य में संक्षिप्त ऊपर पतला गो-पुच्छ के संठाणसंठिए, सव्वरयणामए अच्छे-जाव-पडिरूवे। आकार वाला सर्वरत्नमय स्वच्छ-यावत-प्रतिरूप है । से णं एगाए पउमवरवेइयाए, एगेण य वणसंडेणं सवओ यह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से घिरा हुआ है, समंता संपरिरिखत्ते, पमाणं वण्णओ दोण्हं पि। इन दोनों का प्रमाण और वर्णन जान लेना चाहिए। सिद्धाययणकूडस्स णं उप्पि बहुसमरणिज्जे भूमिभागे सिद्धायतनकूट के ऊपर अधिक सम एवं रमणीय भूभाग कहा पण्णत्ते, से जहा णामए आलिंगपुक्खरेइ वा,-जाव- गया है, यह चर्म से मढे हुए मृदगतल के समान है-यावत्-- वाणमंतरा देवाय देविओ य-जाव-विहरति ।' वाणव्यन्तर देव और देवियाँ-यावत्-विचरण करते हैं।
-जंबु० वक्ख० १, सु० ११ सिद्धाययणस्स पमाणं
सिद्धायतन का प्रमाण४६५. तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्मदेसभाए- ४६५. उस अधिक सम एवं रमणीय भू-भाग के मध्य में एक एत्थ णं महं एगे सिद्धाययणे पण्णत्ते ।
विशाल सिद्धायतन कहा गया है । कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूर्ण कोसं उड्ढं यह एक कोश लम्बा, आधा कोश चौड़ा, तथा एक कोश से उच्चत्तेणं।
कुछ कम ऊँचा है। अणेगखंभसयसन्निविट्ठ, खंभुग्गय-सुकय-वइर-वेइआ, यह कई सौ स्तम्भों से युक्त हैं, स्तम्भों पर स्थित है, वज्रतोरण-वर-रइय-सालभंजिअ-सुसिलिट्ठ-विसिट्ठ-लट्ठ-संठिअ- रत्नों से निर्मित वेदिका तथा तोरण वाला है। श्रेष्ठ रचित पसत्थ-वेरुलिअ-विमलखंभे, णाणामणिरयणखचिअ-उज्जल- पुतलियों से युक्त, सम्बद्ध, विशिष्ट एवं मनोज्ञ आकार के प्रशस्त बहुसम-सुविभत्त-भूमिभागे, ईहामिअ-उसभ-तुरग-णर-मगर- वैडूर्यमणि के विमल स्तम्भों वाला है, उसका भूभाग विविध विहग-बालग-किन्नर-रुरू-सरभ-चमर-कुञ्जर-वणलय-जाव- प्रकार के मणि-रत्नों से खचित, उज्ज्वल और अतिसम सुविपउमलय-भत्तिचित्ते, कंचण-मणि-रयण-थूभियाए, णाणाविह- भक्त हैं। सिद्धायतन की दिवाले ईहामृग (भेडिया) वृषभ, नर, पंचवण्ण-पुप्फपुञ्जोवयारकलिए, वण्णओ।
मगर, विहग, सर्प, किन्नर, रुरु, शरभ, चमर, कुजर, वनलता
-यावत्-पद्मलता के चित्रों से सुशोभित है। उसकी स्तूपिका कंचन एवं मणि-रत्नों की है, नाना प्रकार के पंचवर्ण-पुष्पों के उपचार से युक्त है, यहाँ वर्णन कहना चाहिए।
१ सूत्र सं० ४३३ (पृष्ठ २७१) में सिद्धायतनकूट का संक्षिप्त वर्णन इस सूत्र से कुछ भिन्न है, विशेष स्पष्टीकरण प्रस्तावना में देखें।