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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : यमक देवों की राजधानियाँ
सूत्र ३६१-३९२
जमगा य इत्थ दुवे देवा महिड्ढीया, ते णं तत्थ चउण्हं . सामाणिअ साहस्सीणं,-जाव-भुजमाणा विहरति ।।
वहाँ यमक नामक दो महद्धिक देव निवास करते हैं। वे चार हजार सामानिक देवों का आधिपत्य करते हुए-यावत्-भोग भोगते हुए रहते हैं।
गोतम ! इस कारण यमक पर्वत, यमक पर्वत कहलाते हैं ।
से तेणढणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-"जमगा पव्वया, जमगा पव्वया ।" अदुत्तरं च णं गोयमा! सासए णामधिज्जे-जाव-जमगा पव्वया, जमगा पध्वया ।-जंबु० वक्ख०४, सु०८८
इसके अतिरिक्त 'यमक पर्वत' यह (उनका) शाश्वत नाम है।
जमिगाओ रायहाणीओ
यमक देवों की राजधानियाँ३६२. प०-कहि णं भंते ! जमगाणं देवाणं जमिगाओ रायहागीओ ३६२. प्र०-भगवन् ! यमक देवों की यमिका राजधानियाँ कहाँ
पण्णत्ताओ?
उ.-गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स उत्तरेण उ०-गौतम ! जम्बूद्वीप में स्थित मन्दर पर्वत के उत्तर में,
अण्णमि जंबुद्दीवे दोवे बारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता दूसरे जम्बूद्वीप द्वीप में बारह हजार (१२०००) योजन जाने पर -एत्थ णं जमगाणं देवाणं जमिगाओ रायहाणीओ वहाँ यमक देवों की यमिका राजधानियाँ हैं । पण्णत्ताओ। बारसजोयणसहस्साई आयाम-
विखंभेणं, सत्ततीसं वे बारह हजार योजन लम्बी-चोड़ी हैं। उनकी परिधि सैंतीस जोयणसहस्साई णव य अडयाले जोयणसए किंचि हजार नौ सो अड़तालीस ३७६४८ योजन से किंचित् अधिक है। विसेसाहिए परिक्खवेणं। पत्तेयं पत्तेयं पायारपरिक्खित्ता, ते णं पागारा सत्ततीसं (दोनों में से-) प्रत्येक प्राकार से घिरी है । वे प्राकार साढ़े जोयणाई अद्धजोयणं च उद्धं उच्च तेणं ।
सैंतीस ३७।। योजन ऊँचे हैं। . मूले अद्धतेरसजोषणाई विक्खंभेणं, मज्झेछ सोसाइं मूल में साढ़े बारह योजन विस्तार वाले, मध्य में सवा छह जोयणाई विक्खभेणं, उरि तिष्णि सअद्धकोसाइं योजन विस्तार वाले और ऊपर तीन योजन एवं आधा कोस जोयणाई विक्खभणं ।
विस्तार वाले हैं। मूले वित्थिण्णा, मज्झं सखित्ता, अपि तणुआ, बाहिं मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त और ऊपर पतले हैं। बाहर बट्टा, अंतो चउरंसा, सम्वरयणामया अच्छा। से वृत्ताकार एवं अन्दर से चौकोर है। सर्वात्मना रत्नमय और
स्वच्छ हैं। ते गं पागारा णाणामणिपचवणेहि कविसीसएहि उव- वे प्राकार नाना प्रकार की पंचरंगी मणियों के कंगूरों से सोहिआ, तं जहा-किण्हेहि-जाव-सुविकल्लेहि। शोभित हैं। वह इस प्रकार-कृष्ण-यावत्-शुक्ल वर्ण के हैं। ते णं कविसीसगा अद्धकोसं आयामेणं-देसूणं अद्धकोसं वे कंगूरे अर्धकोस लम्बे, कुछ कम अर्ध कोस ऊँचे और पाँच उद्धं उच्चत्तेणं, पंचधणुसयाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमया सौ धनुष मोटाई वाले हैं, सर्वमणिमय और स्वच्छ हैं। अच्छा । जमिगाणं रायहाणीणं एगमेगाए बाहाए पणवीसं पण- यमिका राजधानियों की एक-एक बाहु में पच्चीस सौ वीसं दारसयं पण्णत्तं ।
द्वार हैं। ते गंदारा बावट्टि जोयणाई अद्धजोयणं च उद्धं उच्च- वे द्वार साढ़े बासठ ६२॥ योजन ऊँचे हैं। सवा इकतीस तेणं, इक्कतीसं जोयणाई कोसं च विक्खंभेणं, तावइयं ३१॥ योजन चौड़े हैं और उतने ही प्रवेश वाले हैं। श्वेतवर्ण तथा चेव पवेसेणं, सेआ वरकणगथूभिआगा, एवं रायपसेण- श्रेष्ठ स्वर्णमय स्तूपिकाओं वाले हैं। इस प्रकार राजप्रश्नीय में इज्ज विमाणवत्तवाए दारवण्णओ, जाव-अट्ठमंगलाई कथित विमान की बक्तव्यता के अनुसार दारों का वर्णन समक्ष
लेना चाहिए-यावत्-आठ-आठ मंगलाष्य हैं।
ति।