________________
सूत्र २३-२४
लोक
गणितानुयोग
११
लोग-पमाणं २३ : प० के महालए णं भंते ! लोए पन्नत्ते ? उ० गोयमा ! महतिमहालए लोए पन्नत्ते,
पुरथिमेणं असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडोओ,
दाहिणणं असंखेज्जाओ (जोयणकोडाकोडीओ,) एवं पच्चत्थिमेण वि, एवं उत्तरेण वि, एवं उडुढं पि।
लोक-प्रमाण २३ : प्र० भगवन् ! यह लोक कितना महान् कहा गया है ?
उ० गौतम ! यह लोक अति महान् कहा गया है, पूर्व में असंख्य कोटाकोटी योजन का है, दक्षिण में असंख्य (कोटाकोटी योजन का है),
इसी प्रकार पश्चिम, उत्तर और ऊपर भी (असंख्य कोटाकोटी योजन का) है।
नीचे असंख्य कोटाकोटी योजन का लंबा चौड़ा है।
अहे असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ आयाम-विक्खं भेणं ।'
-भग० स० १२, उ० ७, सु० २।
२४ : प० लोए णं भंते ! के महालए पण्णत्ते ? ।
२४ : प्र० हे भगवन् ! यह लोक कितना महान कहा गया है ? उ० गोयमा ! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव-समुद्दाणं उ० हे गौतम ! यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप सब द्वीप-समुद्रों के जाव परिक्खेवेणं ।
यावत् परिधिवाला है। तेणं कालेणं तेणं समएणं छ देवा महिड्ढीया जाव महे- उस काल उस समय में छ महधिक यावत् महासुख-सम्पन्न सक्खा जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वए मंदरचूलियं सव्वओ समंता देव जम्बूद्वीप के (मध्य में रहे हुए) मेरु पर्वत पर मेरु की चूलिका सपरिक्खित्ताणं चिट्ठज्जा।
(शिखर) को चारों ओर से घेरकर खड़े रहें। अहे णं चत्तारि दिसाकुमारिमहत्तरियाओ चत्तारि बलिपिंडे नीचे चार बड़ी दिशाकुमारियाँ चार बलिपिण्डों को ग्रहण गहाय जंबुद्दीवस्स दीवस्स चउसु वि विसासु बहियाभिमुहीओ कर जम्बूद्वीप नामक द्वीप के चारों दिशाओं में बाह्याभिमुख खड़ी ठिच्चा ते चत्तारि बलिपिडे जमगसमगं बहियाभिमुहे होकर चारों बलिपिण्डों को एकसाथ बाहर फेंके । पक्खिवेज्जा। पभू णं गोयमा ! तओ एगमेगे देवे ते चत्तारि बलिपिडे हे गौतम ! उन देवों में से प्रत्येक देव उन चारों बलिपिण्डों धरणितलमसंपत्ते खिप्पामेव पडिसाहरितए।
को पृथ्वी पर गिरने से पूर्व ही ग्रहण करने में समर्थ है। तेणं गोयमा ! देवा ताए उक्किट्ठाए जाव देवगतीए एगे हे गौतम ! ऐसी उत्कृष्ट यावत् दिव्य देवगतिवाले उन देवे पुरत्थाभिमुहे पयाए, एवं दाहिणाभिमुहे, एवं देवों में से एक देव पूर्वाभिमुख प्रयाण करे। इसीप्रकार एक पच्चत्थाभिमुहे, एवं उत्तराभिमुहे, एवं उडढाभिमहे देव दक्षिणाभिमुख, एक देव पश्चिमाभिमुख, एक देव एगे देवे अहोभिमुहे पयाए।
उत्तराभिमुख, एक देव ऊर्ध्वाभिमुख और एक देव अधो
मुख प्रयाण करे। तेणं कालेणं तेणं समएणं वाससहस्साउए दारए पयाए। उस काल उस समय में एक हजार वर्ष की आयुवाला एक तए णं तस्स दारगस्स अम्मा-पियरो-पहीणा भवंति नो चेव बालक जन्मा। काल क्रम से उस बालक के माता पिता का णं ते देवा लोगंतं संपाउणंति ।
देहावसान हुआ । तब भी वे देव लोक का अन्त न पा सके।
2
.
१. ५० के महालए गं भंते ! लोए पन्नत्ते ?
उ० गोयमा ! महतिमहालए (लोए पन्नत्ते) जहा बारसमसए। तहेव जाव असंखेज्जाओ जोयण कोडाकोडोओ परिक्वेणं । -भग० स० १६, उ०८, सु० १ ।
ऊपर अंकित भग० स० १२, उ० ७, सु० २ के अन्त में “आयाम-विक्खंभेणं" पाठ है और इस टिप्पण में अंकित भग० स० १६, उ० ८, सु० १ के अन्त में "परिक्खेवेणं" पाठ है।