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लोक-प्रज्ञप्ति
द्रव्यलोक
सूत्र ५७-५८
उ० गोयमा ! नो जीवा, जीवदेसा वि, जीवपदेसा वि, उ० गौतम ! वहाँ जीव नहीं है, जीवों के देश हैं, जीवों के
अजोवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवपदेसा वि । प्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीवों के देश हैं और अजीवों के प्रदेश भी हैं। जे जीवदेसा ते नियम एगिदियदेसा,
वहाँ जो (१) जीवों के देश हैं वे निश्चितरूप से एकेन्द्रियों
के देश हैं। अहवा-एगिदियदेसा य, बेइंदियस्स देसे,
अथवा--वहाँ (२) एकेन्द्रियों के देश हैं, और बेइन्द्रिय का
एक देश है। अहवा-एगिदियदेसा य, बेइंदियाण य देसा,
अथवा-वहाँ (३) एकेन्द्रियों के देश हैं, और बेइन्द्रियों के
देश हैं। एवं मज्झिल्लविरहिओ जाव अणिदिएसु जाव- इस प्रकार मध्यमभंगरहित (शेषभंग) यावत् अनि
न्द्रियों के हैं अहवा-एगिदियदेसा य, अणिदियाणदेसा।
यावत् अथवा एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं और अनिन्द्रियों के
देश हैं। जे जीवपदेसा ते नियम एगिदियपदेसा,
वहाँ जो जीवों के प्रदेश हैं वे निश्चितरूप से एकेन्द्रियों के
प्रदेश हैं। अहवा-एगिदियपएसा य, बेइंदियस्स पएसा, अथवा-वहाँ एकेन्द्रियों के प्रदेश हैं और बेइन्द्रिय के
प्रदेश हैं। अहवा-एगिदियपएसा य, बेइंदियाण य पएसा, अथवा-वहां एकेन्द्रियों के प्रदेश हैं और बेइन्द्रियों के
प्रदेश हैं। एवं आदिल्लविरहिओ जाव पंचिदिएसु अणिदिए इस प्रकार प्रथम भंग रहित यावत् (शेष दो दो भंग) तियभंगो।
पंचेन्द्रिय तक के हैं । वहाँ अनिन्द्रिय के तीनों भंग हैं। जे अजीवा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–रूवी अजीवा वहाँ जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-रूपी य, अरूवी अजीवा य । रुवी तहेव।
अजीव और अरूपी अजीव । रूपी अजीव पहले के समान हैं। जे अरूवी अजीवा ते पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा- वहाँ अरूपी अजीव पाँच प्रकार के कहे गये हैं, यथानो धम्मत्यिकाए
धर्मास्तिकाय नहीं है। १. धम्मत्थिकायस्स देसे,
१. धर्मास्तिकाय का देश है, २. धम्मत्थिकायस्स पदेसे,
२. धर्मास्तिकाय का प्रदेश है, ३-४. एवं अधम्मत्थिकायस्स वि ,
३-४. इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय का देश है, अधर्मास्तिकाय
का प्रदेश है, ५. अद्धासमए।
५. अद्धासमय है। -भग० स० ११, उ१०, सु० २० ।
पएसाणं सोदाहरणं अणाबाहत्तं
प्रदेशों का उदाहरण सहित अनाबाधत्व५८ : प० लोगस्स णं भंते ! एगम्मि आगासपएसे जे एगिदिय- ५८ : प्र० हे भगवन् ! लोक के एक आकाश प्रदेश में, जो एके
पएसा जाव पंचिदियपदेसा अणिदियपएसा अन्नमन्न- न्द्रिय के प्रदेश यावत् पंचेन्द्रिय के प्रदेश तथा अनेन्द्रिय जीवों के बद्धा जाव अन्नमनघडताए चिट्ठति, अत्थि णं भंते ! प्रदेश जो अन्योऽन्यसम्बद्ध यावत् एक दूसरे से सम्बद्ध है, भगवन् ! अन्नमन्नस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाएंति, क्या वे एक दूसरे को किसी प्रकार की बाधा या विशेष बाधा छविच्छेदं वा करेंति ?
उत्पन्न करते हैं या किसी का छविच्छेद करते हैं ? उ० णो इण? सम?।
उ० नहीं, ऐसा नहीं है।
१. लोगस्स जहा अहे लोगखेत्तलोगस्स एगम्मि आगासपदेसे । -भग० स० ११, उ० १०, सु०२० । मूल पाठ इतना ही है
भग० स० ११, उ० १०, सु०१७ के अनुसार ऊपर का पाठ पूर्ण किया है।