Book Title: Ek Safar Rajdhani ka Author(s): Atmadarshanvijay Publisher: Diwakar Prakashan View full book textPage 6
________________ कलमके सहारे.... राजगृहीका सफर.... मुंबई (सेन्ट्रल) से जा रही 'राजधानी एक्सप्रेस' से होते सफरकी बात यहाँ नही है और भारतकी राजधानी दिल्ली या लंदन जापान या अमेरिका - न्युयॉर्कके सफर की बात भी यहाँ नहीं हैं। यह सफर है... २५०० साल पूर्व मगध (M.P.) की राजधानी राजगृहका... राजगृही नगरी यानि क्या ? यह पूछते हो? सुनो तब... राजगृही याने - • वर्तमान चोविशीके बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रतस्वामिके (निर्वाणके सिवा) चार चार कल्याणकोंकी महान कल्याणक भूमि। • आसन्न उपकारी परमात्मा महावीर देवकी कर्मभूमि और धर्मभूमि। • गौतमादि गणधर भगवंतोंकी निर्वाणभूमि (वैभारगिरि)। • प्रभु महावीरके चौदह हजार मुनिओ में उत्कृष्ट घन्ना-अणगारकी अंतिम समाधि-भूमि। • प्रभु महावीर के परमभक्त मगधसम्राट श्रेणिककी राजधानी। • जंबुकुमार जैसे महाब्रह्मचारी महापुरुषों की जन्मभूमि। • धन्ना-शालिभद्र जैसे महाऋद्धिमानों के त्यागकी यशेगाथा गाती त्यागभूभि । • अर्जुनमाली जैसे खुंखार खूनीको भी मुनि बनानेवाली संयमधरा। • महाशतक जैसे महाश्रावकों की पुण्यभूमि। • नंदिषेण, मेतार्य और मेघकुमार जैसे महामुनिओंकी मातृभूमि। • पुण्यवंता पुणिया श्रावककी सामायिकभूमि। • अमरकुमारकी नवकार कहानी सुनानेवाली धर्मधरा। • चेलना और सुलसा जैसी महासतीओंसे सुशोभित रत्नभूमि। • मन का मूल्य समझाती हुई राजर्षि प्रसन्नचंद्रकी कैवल्यभूमि। •प्रभव जैसे महाचोरको भी महावीरकी तीसरी पाट पर स्थापनेवाली वसुंधरा • नंदमणियार जैसे मानवोंका पतन और उत्थानकी कडी बतानेवाली ऐतिहासिक नगरी। •धन और धर्म, लक्ष्मी और सरस्वती इत्यादिक समन्वयसे सर्जित धन्यधरा... और • चतुर्विध संघके ज़ाज़रमान पुन्यसे तप्त तपोभूमि। ___ सामान्यत:, वणिकजन भी सामान्य मुनाफा देखते हुए इसी ओर दौड़ते है, तो प्रभु वीर बनिये के (जो कि सबके) गुरु है नहीं, बल्कि भगवंत थे। इनको आध्यात्मिक मुनाफा (लाभ) ज्यादा दिखा तो विशिष्ट विहारभूमि के रूपमें ''राजगृही'' को पसंद किया यह छोटे बालकको भी समझमें आने जैसी बात है। इसमें कोई आश्चर्य नही है। चलो, राजगृहीकी कुछ नयी-पुरानी घटनाओंको करीबसे देखेंगे। इसके लिए राजगृहीकी चारों ओर परिकम्मा लगानेवारी राजू और संजू नामके दो काल्पनिक पात्रोंको भी नज़रके सामने से न हटायें। आइये! सभीको हार्दिक आमंत्रण है... राजगृहीकी भावयात्रा पर पधारनेका....! योगि - पाद-पद्मरेणु मुनि आत्मदर्शनविजयर्ज कोईम्बतुर-२०५३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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