Book Title: Ek Safar Rajdhani ka
Author(s): Atmadarshanvijay
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 5
________________ विद्वद्वर्यकी कलमसे... श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः श्री प्रेम-भुवनभानु-धर्मजीत-जयशेखरसूरीश्वरेभ्यो नम: एक चित्रमें शतश: शब्दों का सारांश आ जाता है। इस लोकोक्तिने चित्र की महत्ता दर्शायी है। तो भी यह अल्पोक्ति है, ऐसा वहुत बार लगता है। श्रुतिगोचर शब्दों के माध्यमसे जो प्राप्ति होती है, इसे भी कई ज्यादा प्राप्ति दृष्टिगोचर-दृश्यकी ओर एक नज़र रखते ही हो जाता है - जैसे कि किसीने कहा की 'यहाँ एक पुस्तक है'...यह सुनते ही हमें कुछ बोध होता है। फिर दृष्टि घुमाते पुस्तक भी देखा, इसी समय बाह्य मनमें तो 'यहाँ' एक पुस्तक है' इतना ही विचार उत्पन्न हो गया फिर भी अंतरमनमें तो कई दृश्यने घेरा डाल दिया है, जो बादमें कोई यह पुस्तक के बारेमें कुछ प्रश्नों की पूछताछ करते है, जिनके दिये हुए उत्तरसे मालुम होता है। जैसे कि वह पुस्तक कौनसे रंगका है ? ऐसे कोई पूछे तो, ('यहाँ एक किताब है' इतना सुना है तो कुछ जवाब दे सकते नहीं, लेकिन) पुस्तक दिखा हुआ, होनेसे तुरंत जवाब देते है कि यह 'ब्लु कलरमें है' या 'लाल रंगमें है' या तो 'फोरकलर टाइटल-पेजवाली (किताब) है'... आदि. इसी तरह यह कौनसी साइझमें है ? कितनी मोटी है ? किस तरहकी बाईन्डिंगसे युक्त है ? मेजपर है या बुकशेल्फमें है या अन्यत्र कहीं है ? यह मेज कैसा है ? कौनसे कलरका है ? इस मेजपर दूसरी कोई बुक है या नहीं? पुस्तक स्वच्छ है या कितने दिनोंसे मिट्टी खा रही है? ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर हम इसी वक्त व्यक्तरूपमें कुछ भी न सोचे हुए भी स्पष्टरूपसे नि:संदेहरूपसे दे सकते है, यह बता रहें है कि जो एक ही नज़रके घूमानेसे इसके द्वारा यह पूर्णरूपवाली जानकारी होते ही अंदर (मनमे) नोंद हो चुकी थी, इतना बोध शब्दके माध्यमसे पाना हो तो कितने शब्द बोलना होता है? और आंखोंसे पाना हो तो? एक नज़र ही मात्र घुमाना....! बोध करानेमें आंखोकी यह चमत्कारी असरकारकता ही क्रिकेट मेचकी रनिंग कोमेन्टरीसे भी जीवंत प्रसारणको ज्यादा रसप्रद बनाती है ! श्राव्य माध्यमसे भी दृश्य माध्यम (T.V.) पर जाहिर खबर की दर बहुत ज्यादा होते हुए भी सभी कंपनीवाले अपने बोगस मालकी बिक्री के लिए इनको ज्यादा पसंद करते हैं। __ आंखकी बोधप्रदता के इस विशाल फलकका उपयोग सद्बोध हेतु प्राप्त करने की सोच हितेच्छु सुज्ञको भी आयेगा ही, यह स्पष्ट है। स्व. पज्यपाद गरुदेव आ. भ. श्री विजय भवनभानसरीश्वरजी म.सा.भी चित्रोंकी बोधप्रदताको पहचानकर कई साल पर्व प्रायः प्रथम ही बार शासनपति श्री महावीर प्रभुके जीवनके चित्र, बालकों के लिए देव गुरु धर्म संबंधी चित्रावली, "प्रतिक्रमणसूत्र-चित्रआल्बम" आदिकी भेट श्री जैन संघको अर्पण की। पुराने उपाश्रय और कई श्रावकोंके घरोंमें, आदोनी-संस्थाकी ओरसे जो प्रकाशित चकी फ्रेममें जडे हए भी शालीभद्र, श्री स्थलभद्रजी, आदिके संक्षिप्त विवेचनवाले रंगीन चित्र दिखने में आते है। उसीमें भी अनमोल मार्गदर्शन स्व. पूज्यपाद गुरुदेव का था । और इनकी तो शास्त्रपरिकर्मित प्रज्ञा सह सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति थी। अर्थात, कथाचित्र में जिनका महत्त्व न हो ऐसी भी कोई गलत हकीकतकी नोंद दृष्टा का मन न हर ले, इसकी भी पर्याप्तरूपसे दरकार की। अन्यथा कभी ऐसा भी हो जाता है कि किसी साधु भगवंत के दृश्यमें रजोहरण दाहिनी साईडकी ओर दर्शाया हो, दृष्टि भूमि पर न बताते इधर-उधर दर्शाई हो, दंडा और तरपणीको घासपर रखे हुए दर्शाते है। ऐसे-वैसे चित्रोंमें इस बाबतका कोई भी महत्त्व न होते हुए भी चित्रके मार्गदर्शक को इसका ख्याल करना आवश्यक ही है। वरना दर्शकोंके लिए गलत मान्यता अपनानेकी पूरी शक्यता है। क्योंकि दृष्टि के माध्यम से इन सबकी नोंद ली जाती है। ___ अध्यात्मयोगी पूज्यपाद आ.भ .श्रीमद्विजय कलापूर्ण सू.म.सा.के शिष्य मुनिराज श्री आत्मदर्शन वि. ने भी मुख्यरूपसे बच्चोंको बोध मिले, यही दृष्टि सामने रखकर श्री जिनशासनमें प्रचलित और राजगृहमें घटित घटनायें राजू और संजू नामके दो काल्पनिक पात्रके माध्यमसे रंगीन चित्रोंके साथ सरल भाषामें प्रकाशित करने का प्रशंसनीय प्रयास किया है। यह सचित्र कथाएँ अनेक जिज्ञासुओंको अनेकविध बोध देगी ही यह नि:संदेह बात है। भावुकगण, उनके परिश्रम को सफल करें... ऐसी अपेक्षा रखता हूं। -पं.श्री अभयशेखरवि. गणि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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