Book Title: Dvantrinshikadwayi Kirtikala
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Bhailal Ambalal Shah

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Page 9
________________ श्रीगिरधरलाल दामोदरदासजी के सुपुत्र 'शान्तिलालभाई, नटवरलालभाई, तथा हीरालालभाई' तीनों भाइयों ने 'कीर्तिकला' हिन्दी भाषानुवाद का अवलोकन कर उसकी सरलता, तथा उस में किया गया विलक्षण दृष्टि से भावार्थ का प्रतिपादन तथा मनोज्ञता से प्रभावित होकर उक्त अनुवाद के साथ मूल द्वात्रिंशिकाद्वयी के प्रकाशन का सम्पूर्ण व्ययभारवहन का स्वीकार कर प्रशंसनीय तथा अनुकरणीय उदारता बतलायी है। जिससे इस पुस्तक के (कीर्तिकला संस्कृत व्याख्या तथा हिन्दी भाषानुवाद एवं मूल तथा हिन्दी भाषानुवाद) पृथक् पृथक् दो प्रकाशन सम्भव हो सके। उक्त तीनों भाइयों ने निजबुद्धिबल से प्रगति की है, तथा एक सुप्रतिष्ठित पेढ़ी (धी सीनियर सायकल इम्पोटिंग कॅ० बंगलोर सिटी) के कार्यकर्ता हैं। तथा आप लोगो में पूज्य महाराजश्री के चातुर्मास काल में अनेक धर्मक्रियाओं में सोत्साह एवं भक्तिपूर्वक भाग लिया है। तथा महाराजश्री का अपने बंगले पर चातुर्मास परिवर्तन कराकर उस के उपलक्ष में अपनी लक्ष्मी का अनेक शुभकार्यों में सदुपयोग कियाथा । इस प्रकार के धर्मप्रेमी तथा ज्ञानाराधन की भावनावाले उक्त तीनों भाइयों को जितना भी धन्यवाद दिया जाय, थोड़ा है। ___ पाठकों से सविनय निवेदन है कि-प्रस्तुत पुस्तक के मुद्रण काल में प्रूफ संशोधन आदि में सावधानी रखने पर भी दृष्टिभ्रम से तथा मुद्रण दोष से कितनी अशुद्धियां रह गयी हैं। तथा कुछ पाठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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